Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 48
________________ सा देशे रमय ॥ सुणो ॥ १६ ॥ सुणो । मणि चूड मन्दिरा दोय । श्रावक वृत पाले निर्म ला ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ तप जप करे धर उत्सहा । पतली कषाय भाव रखे भला ॥ सुणो ॥ १७" सुणो ॥ चउतीर्थ ने सुख दाय । साता देवे तन धन करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ घणा वर्ष लग इम । देश वृती धर्म अनुसरी ॥ सुणो ॥ १८ ॥ सुणो ॥ अंत अ. वसर आयु जाण । आलोचना निन्दणा करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ अणसण चडते भावं । कर द्रष्टी प्रभू पद धरी ॥ सुणो ॥ १९ ॥ सुणो ॥ उपना ब्रह्मस्वर्ग माय । दश सागर आयु पाइया ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ दानो हुवा सामानिक देव । धर्म रंग रचाविया ॥ सु. ॥ २० ॥ सुणो । लेइ मानव अवतार । करणी कर शिवपावसी ॥ सुणो । सुणो ॥ सत्यनी सतरमी ढाल । ऋषि अमोल सुज्ञ गावसी ।। सुणो श्रोता हो ॥ २१ ॥॥॥y चरित्र सारांस हरी गीत ॥ मन्दिरा चरित्र, परम पवित्र, ढालों विचित सुणिये भवी ॥ जिम मन्दिरा शील में रही । तिम सहू बहीनो सतीयो हवी । तो सुख शौभग्य सदा पाव । लो । गमावसो सह दुःख सही ।। धर्मे आत्म रमाव सो तो शिव पुरी दूरी नहीं ॥१॥ वीर संवत चौवीसलो अडतीस अब सुरू हवा । विक्रम उन्नीससो अडसठ । झान पंचमी भगू भुवा ॥ दक्षिण हैद्राबाद लाला सुखदेव शाह जगा दिवी ॥ तपश्वी तात केवल

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