Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas
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दधी उधारवा । दे मुनिवर उपदेश ॥ ते धारो सुगणा सहू । तागण धर्म की रेश ॥ ५॥ me ॥ ढाल १७ मी ॥ विण जारा की देशी ॥ सुणो श्रोता हो । प्रति बौध आवार ।
अवसर अत्युतम कर चडयो ॥ सुणो श्रोता हो ॥ सुणो श्रोता हो ॥ होवो भवौदधी पार kan नर भव काठे आ पड्यौ ॥ सुणा ॥ १ ॥ सुणो ॥ पुद्गलिक मिल्या भोग । जे भोगी। वक्त अनंत वम्या ॥ सुणा ॥ सुणो ॥ जेह थी पाया महा दुःख । धिक २ किम ए मना स्या ॥ सुणो. ॥ २ ॥ सुणो ॥ जो सुज्ञ हो तो धरो सूग । वमण भोगण ने परिहरो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ करो निज गुण नो भोग । ता अक्षय सुख अनुसरो ॥ सुणो ॥ ३ ॥ सुणो ॥ जो चूक्या ए डाव । तो फिर घणा प्रस्तावसो ॥ सुणो ॥ सुणो ।। कपी कूप पडयो दूजी वार । तिम पुनः गोता खावसो ॥ सुणो ॥ ४ ॥ सुणो ॥ इम जाणी तिजो मिथ्यात्व । सर्व वृती देश वृती बनो । सुणो ॥ सुणो ॥ पतली करो कषाय । मोहमहा वैरी ने.हनो ॥ सुणो ॥ ५॥ सुणो ॥ तो छूटी त्रिताप । अनंत अक्षय सुख पावन सो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ इत्यादि मुनि उपदेश । सुणी शभा उत्साव सो ॥ सुणो ॥६॥ सुणो ।' तब मन्दिरा कर जोड । पूछे गुरु जी फरमावीये ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ हू परणी क्यूं कुष्टिक तांय । पूर्व भव वतावीये ॥ सुणो ॥ ७ ॥ सुणो ॥ कहे मुनि सुणो चिता

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