Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 41
________________ Kखादिम सादिम चारो हो राज ॥ व्यंजन आदि विविध प्रकारो । मेवा मशाले संस्कारो सहो राज ॥ भव्य ॥१॥ रजत पाट सुवर्णनी थालो । रयण कचोला श्रेयकारो हो राजast १९ झारी जल भर सुवर्ण केरी । मेल्या सब सन्मुख सारो हो राज ॥ भव्य ॥ २ ॥ सरखी। सहेल्या रुपे रंभा । सजीया सोले सिणगारो हो राज ॥ पुरुसण आइ अतिही शोभाइ। मिले करी २ मनवारो हो राज ॥ भव्य ॥ ३ ॥ नाना विध पक्वान परुषाया। नाना विधनो। धानो हो राज ॥ शाल दाल घृत झोल आरोग्या । सुगन्धोदक पानो हो राज ॥ भव्य ॥ IN ॥ तृप्त हुवा शुद्ध हो सहु पुर जन । शभा मन्डप मांह आया हो राज ॥ सुखासने Nठ्या आनदी । पाचक तंबोल आरोगाया हो राज ॥ भव्य ॥ ५॥ उत्तम वस्त्र सहु ने पहराया । गहणा पण वक्षाया हो ॥ भाग्य जोग सहु संपत पाया । सानन्दाश्चर्य लाया। हो राज ॥भव्य ॥६॥ रिपु मर्दन नृप करे विनंती । कृपा करी पुर मां पधारो हो राज उमंग हमरी सहुनी पूरो । अर्ज यह अवधारो हो राज ॥ भव्य ॥ ७ ॥ मानी नभेचर पता। हार्थ करी सजाइ । सुरेन्द्र सम शोभाइ हो राज ॥ कुंजरा रुढ दोनो नपत हुवा ॥ और यथा| योग्य बाहणाइ हो राज ॥ भव्य ॥ ८॥ शेहर श्रृंगार्या सहु जन आनन्द्या । मोतीये लीधा बधाइ हो राज ॥ जमाइ नी ऋद्धि देखी सासु जी । मन तन अति हर्षाइ हो राज ॥

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