Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 31
________________ खण्ड दुःखि नाम् ॥ १॥ ॥ ढाल ॥ सर्व स्थान काग छ काला । तोता लीला होवरे लो॥ नतिम सुखिया सह स्थान सुख पावे । दुःखिया दुःख सदा जोधेरे लो ॥ सत्य ॥ ९ ॥ १४ इम सुणी नृप आश्चर्य पायो । लेवू ए वात अजमायोरे लो ॥ इम विचारी तिहां थी। सिधायो । विद्या बल गग ने चल आयोरे लो ॥ सत्य ॥ १० ॥ क्षिती प्रतिष्ट पुर देखी al मनोहर । उतर्यो तिहां तवारोरे लो ॥ निशी माहे रूप विद्रूप कीना । कुष्टिक पणो अंग धार्योरे लो ॥ सत्य ॥ ११ ॥ फिर तो ग्राम में भिक्षुक रूप । मृतिका भाजन फूटो सहा १४ हीरे लो । तेतले राज सूभट तिहां आना । ते कुटी नोकर ग्राहीरे लो ॥ सत्य । १२ ॥ बलकारे लेगया राज मांही । तुज ने दी परणाईर लो ।। ग्राम तजन को हुकमज दीधो । बली दुहाइ फिराइरे लो॥सत्या॥१३॥ पूर्व वैमे परतीत न आइ । तिण कारण परिक्षा ताइरे लो॥ अन्य नर वरण को दाख्यो । बातां विविध वणाइर लो ॥ सत्य ॥ १४ ॥ देवी । नर शेखर रूप बनाया । परिसह घणा उपजायारे लो ॥ पण मेरु जिम तुझ मन नहीं चलीयो । ते देखा में हर्षायारे लो ॥ सत्य ॥ १५ ॥ महा सती जाणी प्रतीत आणी ॥ निज रूप प्रगट कीनारे लो । तेहोजणी चूड मुझ पहचानो । परिक्षा ने दुःख दीनारे ।। लो ॥ सत्य ॥ १६ ॥ धन्य २ तुझने ने तुझ जननीरे । जे धर्म विद्या सीखाइरे लो ॥ 2-AREE

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