Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 32
________________ तासु प्रशादे महा संकट सह्या । पर सत्य शील न खन्डथाइरे लो ॥ सत्य ॥ १७ ॥ जिहवी हं चहाता अर्धगना । तेहवी मिली पुण्य जोगरे लो ॥ तेह हर्ष मुझ हीये न मावे । धन्य मुज राज सुख ए भोगेरे लो ॥ सत्य ॥ १८॥ पण ना कारण तुझ ने सताइ । अतिही त्रास उपजाइरे लो ॥ बज कर्म में बांन्ध्या अनया से । ते दुःख अति मुज थाइर) लो ॥ सत्य ॥ १९ ॥ ए मिश्रित ता म्हारा मन की। दे माफी ने मिटाइरे लो ॥ हिवे N किंवित कभी दुःख नहीं देस्यूं । दे निर्मल मने साइरे लो ॥ सत्य ॥ २१ ॥ प्रेमोत्सुख इम करे विनवणी । गुणा कर्षी खग रायारे लो ॥ कहे अमोल ए ढाल एकादश । सत्या शीले आनन्द वर्तायारे लो ॥ सत्य ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ तब वदे मन्दिरा सती ।। आप कही जे बात । प्रत्यक्ष ते दिठा विना । मुज परतीत नहीं आत ॥१॥ सत्य छलण इण जक्त मे । होय चरित्र अनेक | मिष्ट कटु गुप्त बाह्य बहू । न भरमु ते हैं देख ॥ २ ॥ जो होवो तुम साचला । कुष्टिक महारा कंत ॥ तो रूप पुनः तेह वो करो। जिम पूगे मुझ खत ॥ ३ ॥ मणी चूड अनन्द ने । कह ताही ने मांय ॥ कुष्टेक रूप पुनः धारीयो पूर्व पर सुख दाय ॥ ४ ॥ पेखी हर्षी प्रेमला ।' अहो २ धर्म पसाय ॥ विन्न स्थान उल्ल व भयो । आनंद उर नहीं मांय ॥ ५॥ अपुत्र्यो पुरज लहे । नेत्र हीन लह नण ॥ - -

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