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म. स.
युक्त ते । वस्तु सर्व तेह माय ॥ विल से दम्पती प्रेम थी । दुगुंदक सुर साय ॥ ३ ॥ खण्ड १ तस मेहल ने चहू पखे । चउरंग शैन्य सुचंग || गज गाजी रथ पायका । अगिणित किया १६ बहु रंग ॥ ४ ॥ अवर ठाठ महाराज सो । सहू तिहां जी साजाय ॥ मणी चूड म इन्दिरा संगे । रह्या सुख ने मांय ॥ ५ @ || ढाल १३ मी ॥ कू विन मार्ग माथे धिग धिग ॥ यह ॥ सहू जन कृत कर्म का फल पावे । ते इहां प्रतक्ष दर्शावे जी ॥ आं ॥ प्राते बहू पुर जन पुर वाहिर । अजब ठाठ अवलोय जी ॥ अति अश्चर्य पाया मान मांही | सुरेन्द्र आया कोय जी ॥ सहू ॥ || ति बेला ते खेचरुयारे ॥ दूत विद्या ए बनाय जी ॥ हृष्ट पुष्ट तन वस्त्र भूषण वर । शास्त्र विविध सजाय जी ॥ सह ॥ २ ॥ लेखिज पत्र दियो तस कर में। धस मस करतो चाल्यो जी ॥ तेहना पाद प्रहार करी ने
भूमण्डल पण हाल्यो जी || सहू ॥ ३ ॥ पुर जन देखी अजब दूत ने । खेदाश्चर्य उचित पाया जी ॥ किस्यो होसी छे कारण कांही । ताक मन घबराया जी ॥ सहू ॥ ४ ॥ राज शभा में आयो दूत ते । सहू शभा विस्माइ जी || पत्र ठव्यो नृपना मुख आग - ल । उत्तर तस मांग्याइ जी ॥ सहू ॥ ५ ॥ सचीव बांची पल सुणावे । सहू सुणे चित लगाय जी । गिरी बैताढ्य दक्षिण श्रेणिपत । मणीपुर नयर शोभाय जी ॥ सहू ॥ ६ ॥ तासपातमणीचूडख गपति । जाणी तुझ अन्याइजी ॥ चउरंगणी शैन्यालेइ आयो । सहसंग्रामी सजाडुजी ॥ ६
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