Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 29
________________ १३ १७ ॥ इत्यादि सती सबौध कह्यो । सुणी देवी अति अश्चर्य लयो । मन में देवी मुरजा । खण्ड वे ।। पण ॥ १८ ॥ हक न्हाक इण ने मे सताइ । नाहक कर्म लिया बंधाइ ॥ धन्य २॥ यह इम स्थिर रहावे ।। पण ।। १९ ।। द्रढता जोइ बैर विलावे । मोह मन में उत्पन्न ।। थावे । सत्य सदाइ सुख दावे ॥ पण ॥ २० ॥ यह ढाल दशमी गाइ । सती नी द्रढता दिख लाइ ॥ अमोल आगे चमत्कार थावे ॥ पण ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ वेदना सह विरला गइ । शांती वरताइ तन ॥ सुस्ती व्यापी तन में । बैठी स्थिर कर मन ॥ १ ॥ थाक भूख प्यास जोग थी । आती ही गड कुमलाय ॥ तन अति दुःखित थयो । टेको । भीत नो सहाय ॥ २ ॥ निद्रिस्थ हुइ तताक्षण । मन्दिरा तिण ही ठाम ॥ मानु सती । सुख पेखवा । प्रगटया दिन का वाम ॥ ३ ॥ प्रकाश पडयो अनना परे । गइ निद्रा विराम लाय ॥ चक्षु प्रकाशी पेखतां । अश्चर्य सति अती पाय ॥ ४ ॥ नहीं नर शेखर नहीं मुरी। । नहीं पति कुष्टिक पास ॥ एक कोई अन्य दिव्य पुरुष ॥ वस्त्र भूषण सू शोभाल ॥ ५ चिन्ते ए स्यूं स्वप्न छे । के कोइ भरम जणाय ॥ प्रितम महारा किहां गया । इम विचार घवराय ॥६॥ संघ विछुटी मृगली ज्यों । चउपखे रही जोय ॥ तेतले सन्मुख नर रह्यो। वो-। ले नम्र अति होय ॥ ७ ॥ ॐ ॥ ढाल ११ मी ॥ आज आनंद धन जोगीश्वर आया ॥

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