Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 27
________________ म. स. | तूं शरम क्यों लात ॥ सुणो ॥ २२ ॥ इम देवी कुँवरी ने घणी समजाय ॥ ढाल नवमी वाडी १२ । अषि अमोलख गाय ॥ सुणो ॥ २३ ।। ७ ॥ दुहा ॥ बार २ सुरी वयण सुण । मंदिरा । कह कर जोड ॥ माता ऐसा बचन सुण । मुज ने लागे खोड ॥ १॥ कह्यो में थांरान थकी । मरण मुझ कबूल ॥ पण नहीं वाच्छं अन्य ने । अनंत दुःख को मूल ॥ २ ॥ एका भव दुःख मरण से । मां में डरघू नाय ॥ पण अनंत भव बीगडे । कदापी ते न कराय | १३ ॥ डरावे तूं मुझ भणी । जाणी उन्मर बाल ॥ पण वृत रक्षण भणी । मुज ने जाण । १२ जे काल ॥ ४ ॥ कृपा करी अहो मात जी । बचन इस मा उचार ॥ लेइ म्हारा भाइ ने। । शिघ्र इहां थी पधार ॥ ५॥ ॥ ढाल १० मी ॥ थारो गयोरे यौवन पाछो नहीं आवे ॥ यह ॥ इन सुनी सती नी वाणी | चन्डा चन्डे प्रजलाणी । अरुण नेत्र तन कंपाक वे ॥ पण सती तो सत्य नहीं छिटकावे ॥ १॥ रीसे सती नी टंगडी झाली । दीना आकाश में उछाली ॥ गणण करीमियम!! ३ | धार्णः सती पडवा लागी । सुरी त्रिसूल ऊभी करी नागी । झेलो तिण पर तन भेदावे ।। पण ॥ ३ ॥ फिर उछाले फिर। झल । धरणी ये डाल पग थी ठेल । तिक्षण जार वर लगावे ॥ पण ॥ ४ ॥ रक्त तणी । छूटी धारा । छिद्र पढ्या तन जिम झारा । मांस लटक बारे आवे ॥ पण ॥ ५॥

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