Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 26
________________ माय ॥ सुख संपती में पामस्यूं सवा ॥ सुणो ॥ ९.॥ प्राणान्त हूं नही तज्यू कोडीयो नाम साथ । मन तन करी म्हारो एक येही नाथ ॥ सुणो ॥ १० ॥ वीजा सह नर म्हारे छेजी तात भ्रात । सो बाता की मे तो कही एक बात ॥ सुणो ॥ ११ ॥ तिण थी अर्ज करूं। IN माता शीस नमाय । नर शेखर कुँवर म्हागे सहोदर थाय ॥ सुणो ॥ १२ राज ऋद्धिार भाई सहित देवो निज स्थान पहोंचाय । मुज कारण दुःख जरा. भुक्तो मां माय ॥ सुणो ॥ १३॥ सुणो कुँवरी हितकार। मान म्हारी कहणी सुख दातार ॥७॥ इम बचन सुणी देवी व कोप भराय । नेत्र अरुण कर कहे धमकाय ॥ सुणो ॥ १४ ॥ मूर्खणी हटीली तूंतो भरीव गुमान । निज सुख दुःख को जरान तुज ज्ञान ॥ सुणो ॥ १५ ॥ महारा बचन तूं मिथ्या । कयाँ चहाय । मुशकले हूं राज पुत्र लाइ छु मनाय ॥ सुणो ॥ १६ ॥ इण ने में दीनो। अटल बचन । तेह तो फिरसके नहीं कोई दिन ॥ सुणो ॥ १७॥ तेह थी म्हारो कयो। मानी नर शेखर तांय । कर भरतार जे. तूं सुख चहाय ॥ सुणो ॥ १८ ॥ मेहनत म्हारी व होसी सफल । बचन महारो रहसी अटल ॥ सुणो ॥ १९ ॥ खबरदार ना बोले मत IN/ उठ कर गृह राय कुँवर नो पट ॥ सुणो ॥ २० ॥ हिवे नटथा पामसी दुःख अपार । कूल मरण मारस्यूं हूं इणवार ॥ सुगो ॥ २१ ॥ बोल शिघ थारा मन की बात । क्यों नहीं उठान

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