Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 28
________________ उज्वल वेदना होवा लागी । नर्क निगोद का दुःख सागी । तो भी सती नहीं घबरावे ॥ पण ॥ ६ ॥ धीर वीर हो मूनी नी परे । सति प्रभेष्टी चित धरे । भाले शल्य नहीं चडा. वे ॥ पण ॥ ७ ॥ नर्क तणा दुःख संभारे जे भोगवी आइ अनंत वारे ॥ सागरोपमा पार किम पावे ॥ पण ॥८॥तिसा तो यह दुःख नाहीं । किंचित काल में विरलाइ । पणः । आगे तो सुख उपजावे ॥ पण ॥ ९ ॥ इत्यादि विचारे समता धारी । ठस्को नहीं किया उचारी । देखी देवी अश्चर्य लावे ।। पण ॥ १० ॥ त्रीसूल ठवी इम कहे सूरी । थारी। अजु इच्छा नहीं हुइ पूरी ॥ क्यों कमवती कराये ॥ पण । ११ । भान २ म्हारी वाणी मत कर जरा आना कानी । नर शेखर वर जो सुख चहावे ॥पण॥१२॥ सती करंगुली । कान में घाली । कहे देवी से बोल संभाली । कर जे. थारे मन में फावे ॥ पण ॥ १३ ॥ इण तनका खन्डो खन्ड जो थावे । तमां म्हारो कोइ नहीं जावे । पण शील स्वण ने नाd बट्टो आवे ॥ पण ॥ १४ ॥ अनंत भव में जे नहीं पाइ । तिण विन अनंत भव भी आइ । ते अबके ही मुज कर आवे ॥ पग ॥ १५ ।। येह सब दुःख कापन हारो । येही सब सुख आपन हारो ॥ चिंता माणी थी अधिक भावे ॥ पण ।। १६ ।। नहीं नहीं नहीं खन्डू इण ताइ । तूं कांइ करसी म्हारो बाइ । मरण से अधिक नहीं देखावे ! पण ॥

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