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नार जी ।। धन्य ।। १६ ॥ थाक्यो घणो हूं सहू दिन फिरतो । लेवादे निद्रा लगार जी धन्य ।। १७ । इम कहो सूतो खंटी तणी । औडा कम्बल ते वार जी ॥ धन्य ॥१८॥
ती पाते भक्ती ने उमाइ । दावे तव चरणार जी ॥ धन्य ॥ १९ ॥ माखण सम कोमला। कर तेहनो । भरी जे रक्त मझार जी ॥ धन्य ॥ २० ॥ पण दुगंछा न लावे जरा भर ।।
नहीं दुगंधे फेरे घाण द्वार जी ॥ धन्य ।। २१ ।। कुष्टा निद्रा में घोरण लागो । तोही न १ नाक NI
भक्ति परिहार जी ॥ धन्य ॥ २२ ॥ ढाल सातमी कही अमोलख । देखो पतिवृता अचार जी ॥ धन्य ॥ २३ ॥ ७ ॥ दुहा॥ सती पती उत्तर विना । भाक्ति तजे कहो केम ॥ मन्दिरा पग चंपी रहे । मन में प्रमेष्टी प्रेम ॥ १॥ थाक भूख प्यासे करी । तन गयो कुमलाय ॥ रंग सडू दूखे तहथी। निद्रा घेरो दियो आय ॥ २॥ पग चंपी करता था। झोको आयो ते वार ॥ तेतले तिहां नीप ज्यो । अण चिन्त्यो चमत्कार ॥ ३॥ नर नारी नो जोडलो । दिव्य स्वरूप भलकार ॥ रयण भूषण वस्त्र भला । सज्या सह सिणगार॥ NI आइ ऊभा सती सन्मुखे । सतीना खुलिया नेण ॥ चकित हुइ देखी करी । निकले नाथ मुख थी वेण ॥५॥७॥ढालम।सुणो चन्दा जी श्री मंदिर पर मात्म पासे जाव जो ॥यह । पुणवाइहो म्हारो वचन ए मान्य कियासुख पावती हित' दाइ हो। मान कर्यो सहू दुःख क्षिण में