Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 21
________________ खण्ड १ ९ धार जी ॥ धन्य ॥ आं ॥ कहे सती श्वामी निश्चय करो मन । पुण्ये मिले नर अवतार म. स. जी ॥ धन्य ॥ १ ॥ जेजे पुद्गल जिरे भोगवा । ते पण तस मिलनार जी ॥ धन्य ॥ २ ॥ समय मात्र नहीं देर लगे तस । संजोग मिले वक्ते सार जी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ आप के साथे हूं पण फिरस्यूं । भिक्षा ए द्वारो द्वार जी ॥ धन्य ॥ ४ ॥ भाग्य जोग जो मिलसे, आप ने । मांगता सरस निरस अहार जी ॥ धन्य ॥ ५ ॥ ते लेइ एक स्थाने आस्यां छांटी सरस तेह मझार जी || धन्य ॥ ६ ॥ आप ने पास में बेठ जिमास्यूं । करी घणी मनवार जी || धन्य ॥ ७ ॥ जे ऐंठ बाडो बचली आप को । ते मे खाइ करस्यूं गुजार जी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ इमही जे वस्त्र मांग्या मिलसी । ते माथी चोख २ टार जी ॥ धन्य ॥ ९ ॥ हाथे सींवी पोशाक वणास्यूं । ते आप कर जो श्रृंगार जी ॥ धन्य ॥ १० ॥ उबर्या ते में सान्दी पेहरस्यूं । रहस्यूं आप ने लार जी ॥ धन्य ॥ ११ ॥ दुःख नही किंचित देस्यूं कदापि । करस्यूं सेवा चरणार जी ॥ धन्य ॥ १२ ॥ आप को सहू बोजो शिर उठास्यूं । रहस्यूं हुकम मझार जी || धन्य ॥ १३ ॥ पूर्व पुण्ये हुइ राज पुत्री । हिवे नहीं गइ सहू हार जी ॥ धन्य ॥ १४ ॥ धन्य ॥ अन्य वस्त्र थी मूंगी नहीं श्वामी । इम न करो तिस्कार जी ॥ धन्य ॥ १५ ॥ इम सुणी कुष्टी कहे चुप रहे । तूं तो बोलणी घणी

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