Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ सहायक जरीया हो ॥राजे ॥ ११॥ अन्नौदक विण घणा मरे । शीत ताप पिडाया हो। 5 झूरे घणा धन कुटंब ने । देवो ताप मिटाया हो ॥ राज ॥ १२ ॥ निज ने सुखी नहीं। कर सके । तो परने किम करसे हो ॥ भूखो भिख्यारी तणो । उदर किम भरसे हो ॥ राजे ॥ १३ ॥ म्हारी जो पूछो खरी । तो तात जी सुण लीजो हो ॥ पूर्व जन्म पुण्य ।। संचीया । वायो धर्म नो बीजो हो ॥ राजे ॥ १४ ॥ तो पुण्यात्मा तुम जिसे । घर उपनी आइ हो ॥ सुख संपत विलसी रही । ए संचित कमाइ हो ॥ राजे ॥ १५ ॥ कीधो सो पाई इहां । करस्यूं सो पास्यूं हो ॥ यह निश्चय म्हारो खगे। कह्यो तात जी यांना स्यूं हो ॥ राजे ॥ १६ ॥ आप पण श्रद्धो इसो । छोडा मिथ्या गुमानो हो ॥ जिन वयण व सत्य श्रद्धीये । बाल विनंती मानो हो ॥ राजे ॥ १७ ॥ आपको मन दुःखाव वा । नहीं में । इहां बोली हो ॥ पूज्य पिता श्री महारा । हिता हित गृहो तोली हो ॥ राजे ॥१८॥ इम बहु मधुर वयण करी । कुँवरी राय समजावे हो ॥ ढाल तीजी अमोलख कही। न्याय सुज्ञे सुहाचे हो ॥ राजे ॥ १९ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ शीतोज्वर उद्वत भणी । पय सकर को पाय ॥ विष रुप जिम प्रगमे । तिम नृप ने ते वाय ॥१॥ सम विषम रूप मानीया कोपातुर अतिथायः ॥ जाणी कुँवरी वैरणो । अविनीत हट्ट गृहाय ॥ २ ॥ पापणी भरी म

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50