Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 30
________________ श्री म थ से विधिपूर्वक उस मन्त्र की पूजा करनी चाहिए ।। २२-२३ ।। जिस समय सम्यग्ज्ञान के यन्त्र की पूजा समाप्त हो चुके उस समय भक्तिपूर्वक उत्तम तप के स्थान परम गुरुओं की उत्तमोत्तम पूजा की सामग्री से अर्चना कर ऊपर विस्तार से बतलाए गए तेरह प्रकार चारित्र का भक्तिपूर्वक यन्त्र लिखना चाहिए तथा जब वह यन्त्र लिख कर समाप्त हो जाए, उस समय रत्नत्रय पूजा के विधान में जो भी उस सम्यक्चारित्र के यन्त्र की पूजा की विधि कही गई है, उसके अनुसार भक्तिपूर्वक विपुल आयोजन के साथ उस यन्त्र को पूजा करनी चाहिए ।। २४-२५।। इस प्रकार रत्नत्रय विधान के बाद अन्त में भाँति-भाँति के फल तथा पक्व अन्नों से शोभित अर्ध-- आरती उतारनी चाहिए तथा रत्नत्रय यन्त्रों की तीन बार प्रदक्षिणा देकर रत्नत्रय विधान में जो जाप शास्त्र में कहे गए हैं, उन जापों को जपना चाहिए ।। २६ ।। इस प्रकार ल्लि भक्तिपूर्वक बड़े समारोह से रत्नत्रय की पूजा कर रत्नत्रय व्रत को धारण करनेवाले महापुरुष को गुरु के समीप जाना ना चाहिए तथा उनके श्रीमुख से आत्म का कल्याण करनेवाला आगम का स्वरूप आनन्दपूर्वक सुनना चाहिए । इस रीति से जो पुरुष रत्नत्रय व्रत को पालन करनेवाला है, उसे तीनों दिन अर्थात् त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णमासी के दिन प्रातःकाल, मध्यान्हकाल तथा सायंकाल रत्नत्रय यन्त्रों तथा जिनेन्द्र देव आदि की बड़े समारोह से शुभ तथा उत्कृष्ट पु पूजन करनी चाहिए । इस प्रकार पूजा के बाद व्रतधारियों को जिन मन्दिर के अन्दर अपने संघ को साथ ले महान् उत्सव के साथ महा अभिषेक भी करना चाहिए ।। २७ - २६ ।। रत्नत्रय व्रत धारण करनेवालों का यह विशेष कर्तव्य रा है कि वे तीन दिन तक समस्त गृह सम्बन्धी आरम्भों का त्याग कर लगातार जिन - मन्दिर के अन्दर रहें तथा वहाँ पूजा तथा आवश्यक कृत्यों में दत्तचित्त हो धर्मध्यान से काल व्यतीत करें ||३०|| समस्त प्राणियों को अभयदान आदि देकर गीत, नृत्य आदि कराकर व्रती को इस महान् पर्व में अपनी शक्ति के अनुसार नाना प्रकार का उत्सव करना चाहिए ।।३१।। जो पुरुष रत्नत्रय व्रत का आचरण करनेवाला है, उसे चाहिए कि वह रत्नत्रय व्रप्त के बाद उस रत्नत्रय के स्मरण के लिए अपने दक्षिण हाथ में तीन मोतियों को धारण करे ||३२|| इस प्रकार रत्नत्रय के यन्त्र तथा श्री जिनेन्द्र आदि की त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा -- इन तीन दिन पर्यन्त भक्तिपूर्वक पूजा कर प्रतिपदा के दिन भी पैंतीस (छत्तीस) प्रकार के व्यन्जनों से आनन्दपूर्वक उनकी पूजा करे ।। ३३ ।। उसके बाद वह व्रती निवास गृह आवे तथा उत्तम, मध्यम, जघन्य-- तीनों प्रकार के पात्रों को यथायोग्य दान देकर प्रसन्नता से प्रासुक तथा मधुर भोजन से रा ण १९ For Private & Personal Use Only श्री म ल्लि Jain Education International ना 555 पु ण www.jainelibrary.org

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