Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 105
________________ हैं। जो परुष धर्मात्मा हैं. उनके समस्त प्रकार के कल्याणकों को प्रदान करनेवाली लक्ष्मी धर्मरूपी मन्त्र से वश की || गई गहदासी के समान रहती है। अहमिन्द्रपद, इन्द्रपद, सर्वार्थसिद्धि विमान की विभूति, उत्तम स्वर्ग का सुख भी १ गर्म की कपा से प्राप्त होता है। जो मनष्य धर्मात्मा हैं. धर्म की कपा से उनके षट खण्ड की विभति. नौ निधि. चौदह | रत्न. संदर्शन-चक्र आदि चक्रवर्ती की समस्त विभति प्राप्त होती है और भी अनेक प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त होती है। सबसे पवित्र एवं प्रधान तीर्थंकर की विभूति है; परन्तु धर्मात्माओं को धर्म की कृपा से वह भी प्राप्त हो जाती है । गणधर पद एवं ऋद्धि आदि अनेक प्रकार की विद्यायें भी धर्म की कृपा से प्राप्त होती हैं । विशेष क्या ? तीनों || लोक में जो वस्तु बहुत दूर है, अत्यन्त दुर्लभ है एवं अमूल्य है, वह वस्तु भी धर्म की कृपा से अपने-आप हाथ पर आकर विराज जाती है। मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति संसार में अत्यन्त कष्टसाध्य है; परन्तु जो महानुभाव धर्मरूपी धन के स्वामी हैं, वह मुक्ति-लक्ष्मी भी उन पर रीझ जाती है एवं पास आकर प्राप्त हो जाती है, फिर अन्य देवांगनाओं की || तो बात ही क्या है अर्थात् धर्म की कृपा से उनका प्राप्त होना अत्यन्त सुलभ है । इसलिए ग्रन्थकार उपदेश देते हैं || कि जो महानुभाव धार्मिक हैं--परम धर्मात्मा हैं, उन्हें यत्नपूर्वक सदा धर्म का सेवन करना चाहिए । जो महानुभाव पूर्व पुण्य के उदय से संसार में सुखी हैं, उन्हें भी धर्म-वृद्धि, सुख-वृद्धि एवं मोक्ष के लिए धर्म धारण करना || || चाहिए। जो दःखी हैं, उन्हें दःख दूर करने के लिए सदा उत्तम धर्म धारण करना चाहिए । पापी जीवों को पाप की हानि के लिए धर्म धारण करना परमावश्यक है एवं जो संसार की दुष्ट दशा से भयभीत हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति के लिए धर्म का सेवन करना चाहिए । संसार में मनुष्य-जन्म का पाना अत्यन्त दुर्लभ है--बड़ी कठिनता से प्राप्त होता हैं; इसलिए जो मनुष्य विद्वान हैं--संसार की परिस्थिति के वास्तविक रूप से जानकार हैं, उन्हें काल का एक क्षणमात्र भी धर्म कार्य के बिना नहीं बिताना चाहिए ।।७३-६४।। इस प्रकार जिस समय श्रीजिनेन्द्र भगवान ने समीचीन-धर्म, उसका फल एवं उसके भेद आदि का विस्तार से ||९४ वर्णन किया, उस समय समवशरण के अन्दर जितने भी भव्य बैठे थे, सबकी परिणति धर्म कार्यों की ओर झुक: ।।८५|| धर्मोपदेश के साथ-साथ श्रीजिनेन्द्र भगवान ने मोक्ष, मोक्ष का फल, मोक्ष का मार्ग एवं मोक्ष के कारणों का भी विस्तार से निरूपण किया । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव एवं भाव-इस प्रकार पाँचों परावर्तनों का भी स्पष्ट रूप से Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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