Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 68
________________ FFFFF पांडुक वन उस समय साक्षात् क्षीर समुद्र सरीखा जान पड़ता था ।।१०।। इस प्रकार जिनमें अनेक प्रकार के गीत एवं नृत्य आदि कार्य हो रहे हैं, अनेक प्रकार के करोड़ों वाद्य बज रहे हैं, जिनका आयोजन अनेक देवी-देवों के द्वारा किए गए हैं, ऐसे सैकड़ों महान उत्सवों के साथ क्षीर समुद्र के जल से जब भगवान का अभिषेक समाप्त हो चुका; तो उसके बाद धारा गिरते समय जिनसे 'जय जय' शब्द निकलता है, ऐसे सुगन्धित जल से भरे कलशों से देवेन्द्र ने भक्तिपूर्वक बड़े ठाट-बाट से भगवान श्री जिनेन्द्र के अभिषेक का आयोजन किया । नाना प्रकार के महामनोहर सुगन्धित द्रव्यों से मिश्रित सुगन्धित जल के भरे हुए कलशे रक्खे गए एवं उनसे समस्त प्रकार के विधानों के जानकार इन्द्र ने तीन जगत् के जीवों को मोक्ष-मार्ग का विधान सुझानेवाले तीर्थंकर का भक्तिपूर्वक अभिषेक किया ।।११-१२।। तीर्थंकर का शरीर स्वभाव से ही अत्यन्त सुगन्धित था; इसलिए उनके शरीर पर गिरती हुई वह सुगन्धित जल की | धारा अमृत की धारा के समान महा शोभायमान जान पड़ती थी ।।१४।। इस प्रकार सैकड़ों उत्सवों के साथ सबों को आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला वह सुगन्धित जल से किया गया अभिषेक भी समाप्त हो गया एवं भक्तिपूर्वक अभिषेक कर उन देवों ने महान पुण्य का सन्चय कर अपने को पवित्र बनाया ।।१५।। गंधोदक के सुगंधित जल से उस समय समस्त दिशाएँ व्याप्त थीं तथा वह गंधोदक की धारा महापवित्र सज्जनों के पण्यों की धारा सरीखी जा "वह पवित्र धारा हमें भी पवित्र करें" ऐसा उच्चारण कर देवों ने अपनी-अपनी विशुद्धि की कामना से स्वर्ग की || पैडियों स्वरूप वह गंधोदक का पवित्र जल अपने-अपने मस्तकों से लगाया, पीछे समस्त शरीर में लगा डाला ।।१६-१७।। सुगंधित जल से जिस समय भगवान का अभिषेक समाप्त हो गया, उस समय अनेक प्रकार के महोत्सवों के साथ देवों ने अगर-तगर आदि के उत्तमोत्तम सगंधित चर्णों से एवं सगंधित जलों से तीर्थंकर के शरीर का उबटन किया।।१८।। जब अभिषेक का कार्य एवं उबटन का समस्त कार्य समाप्त हो चुका, उस समय दिव्य एवं सुगंधित उत्तम पजन की सामग्री से तीर्थंकर को चारों ओर से वेष्टित कर देवों ने बडी भक्ति से उनकी पजा की ।।१६।। इस प्रकार ५७ देवों ने पूजा. शान्तिविधान एवं पष्टिविधान का कार्य समाप्त कर तीनों लोक के गरु भगवान श्री मल्लिनाथ की तीन प्रदक्षिणा दी एवं मस्तक झका कर उन्हें भक्तिपर्वक नमस्कार किया तथा अभिषेक आदि कार्यों के समाप्त हो जाने पर उनकी परम धीरता-वीरता देखकर आश्चर्य से उत्सुक होकर इन्द्राणी ने श्रृंगार के लिए आयोजन करना प्रारम्भ कर 44444 Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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