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में भवनवासी देव, आठवें में व्यन्तर देव, नौवें में समस्त ज्योतिषी देव, दशवें में वैमानिक देव, ग्यारहवें मनुष्य एवं बारहवें में तिर्यन्च बैठे थे ।। १४६-१५१।। इस प्रकार श्रीमल्लिनाथ भगवान की चारों ओर से घेर कर ये बारह कोठों में बैठनेवाले अतिशय भक्ति रखनेवाले जीव धर्मरूपी अमृत के पीने की इच्छा से उनके सम्मुख आनन्द से उत्फुल्ल नेत्रों के धारक देवों ने जिस समय समवशरण के मण्डप में प्रवेश किया, उस समय श्रीजिनेन्द भगवान को देखा । वे भगवान उस समय बारह कोठों में बैठनेवाले प्राणीजनों से शोभायमान थे, अनेक प्रकार की विभूतियों से व्याप्त थे। १.अशोकवृक्ष का होना २.रत्नमयी सिंहासन ३.भगवान के शिर पर तीन छत्रों का होना ४.भगवान के पीछे | भामण्डल का होना ५.भगवान के मुख से निरक्षरी दिव्य-ध्वनि का खिरना ६.देवों के द्वारा पुष्पवृष्टि का होना ७. यक्ष देवों के द्वारा चौंसठ चमरो का दुरना एवं ८.दुन्दुभी वाद्यों का बजना-- इस प्रकार आठ प्रातिहार्यों से शोभायमान थे। १.क्षायिकज्ञान २.क्षायिकदर्शन ३.क्षायिकदान ४.क्षायिकलाभ ५.क्षायिकभोग ६.क्षायिकउपभोग ७.क्षायिकवीर्य ८. क्षायिकसम्यक्त्व एवं ६.क्षायिकचारित्र--इस प्रकार नौ केवललब्धियों से भूषित थे। समस्त प्रकार की वांछाओं को पूरण करनेवाले थे, संसार के दुःखों से तारनेवाले तीर्थ के स्वामी थे, सम्यक्त्व आदि गुणों के समुद्र थे, उपमातीत थे एवं दिव्य आसन पर विराजमान थे ।। १५३।। उसके बाद तीनों लोक के गुरु, गुणों के समुद्र, समस्त प्रकार की ऋद्धियों एवं धर्म के स्थान श्री जिनेन्द्रभगवान की समस्त इन्द्रों ने भक्तिपूर्वक अपने सहचारी देव एवं देवांगनाओं के साथ तीन प्रदक्षिणा दीं एवं उनके गुणों में अनुरक्त होकर सबों ने अपने-अपने हाथ जोड़कर चूड़ामणियों से जगमगानेवाले अपने मस्तकों को झुका कर भक्तिपूर्वक नमस्कार किया ।। १५४।। इस प्रकार समस्त अनुपम गुणों के समुद्र, समस्त तत्व के प्रकाशित करनेवाले, समस्त दोषों से रहित, ज्ञानावरण आदि घातिया-कर्म-रूपी बैरियों के नाशक, मोक्षाभिलाषी तीनों लोक के इन्द्रों से सेवित एवं वन्दित वे भगवान अपने समान असाधारण ऐश्वर्य हमें भी प्रदान करें ।।१५।।
इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति कृत संस्कृत भाषा में श्री मल्लिनाथ चरित्र की पं० गजाधरलालजी न्यायतीर्थ विरचित हिन्दी वचनिका में श्री मल्लिनाथ भगवान का दीक्षा कल्याणक और केवलज्ञान कल्याणक का वर्णन करनेवाला छठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ।।६।।
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