Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 35
________________ शि था । अन्य किसी प्रकार की क्रियाओं का उसके शरीर से आचरण नहीं होता था; इसलिए वह राजा साक्षात् धर्मस्वरूप था ।।६८।। वह राजा वैश्रवण सर्वदा धर्म का आचरण करता था, इसलिए यद्यपि वह समस्त इन्द्रियों को तृप्त करनेवाले भोगों का भोग तो करता था; परन्तु धर्मानुकूल उत्कृष्ट भोगों का ही भोग करता था, धर्म विरुद्ध मर्यादा से अतिक्रान्त भोगों का भोग नहीं करता था ।।६६।। कदाचित वर्षा ऋतु का पूर्ण प्रारम्भ हो चुका था तथा उसके निमित्त से वन की वृक्षावली फल-फूलों से युक्त म हरी-भरी शोभित हो रही थी। उस समय राजा वैश्रवण को वन की वृक्षावली देखने का कौतूहल हुआ; इसलिए वह || म अपने वशवर्ती अनेक राजाओं के साथ वन की शोभा निरखने चल दिया ।।७०।। मार्ग के समीप में ही एक बड़ का वृक्ष था, जो कि अत्यन्त ऊँचा था, महामनोहर था, पत्तों तथा डालियों से आच्छादित था, गोलाकार था एवं सैकड़ों पक्षियों से भरा था ।।७१।। मार्ग में जाते हुए राजा ने वह बड़ का वृक्ष देखा एवं आश्चर्य से युक्त होकर इस प्रकार थ। कहने लगा--'देखो ! देखो ! यह वृक्ष कितना चौड़ा है, कितना ऊँचा है, इसका मूलभाग कैसा जकड़ा हुआ है एवं कैसा सुन्दर एवं सघन है।' ऐसा कह कर एवं साथ में रहनेवाले लोगों के सामने उस वृक्ष के विषय में अत्यन्त आश्चर्य प्रगट कर वह मार्ग में और भी आगे को चल दिया एवं क्रम से चलता-चलता वन के मध्य भाग में आ पहुँचा ।।७२-७३।। वन में जाकर वहाँ राजा वैश्रवण उत्तमोत्तम स्त्रियों के साथ एवं राजपूत्रों के साथ अपनी इच्छा से अनेक प्रकार की क्रीड़ा करने लगा। जब क्रीड़ा समाप्त हो गई एवं नगर को लौटने लगा तो जिस मार्ग से गया था, उसी मार्ग से नगर को बड़े आनन्द से लौटा । मार्ग में क्या देखता है कि वह आश्चर्यकारी लम्बाई-चौड़ाई वाले जिस वट-वृक्ष को छोड़ गया था, वही क्षणभर में विद्युत के गिरने से खाक हुआ पड़ा है ।।७४-७५।। बस ! कुछ ही क्षणों में वृक्ष की यह विस्मित करनेवाली दुर्दशा देख कर उसे संसार से एकदम वैराग्य हो गया एवं वह मन में इस प्रकर की चिन्ता करने लगा । संसार में बद्धमूलता--मजबूत जड़ सदा किसी की भी नहीं रहती । न किसी का विस्तार--फलना-फूलना सदा रहता है एवं न तुगंत्व-अभिमान किसी का सदा स्थिर रहता है |॥७६।। बड़े आश्चर्य की बात है कि देखो ! कुछ देर पहिले यह वृक्ष कितना विशाल एवं विस्तृत था, सो जब आधे ही क्षण में ऐसी विलक्षण अवस्था को प्राप्त हो गया, अर्थात भस्म में मिल गया, तब किसी का जीवन, यौवन, सुन्दरता आदि स्थिर रहेंगे--यह २४ Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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