Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 58
________________ 42FFFF ।।३६।। कोई-कोई कहती थी, “अच्छा माता ! इस पहेली का अर्थ बताओ-- ऐसा त्रि नेत्र--तीन नेत्रों का धारण करनेवाला संसार के अन्दर महादेव कौन है ? जो 'नित्यकान्ताविरक्तः' अर्थात् सदा स्त्रियों से विरक्त हो अथवा नित्यकांता--मोक्षरूपी स्त्री में विशेष रूप से अनुरक्त हो । प्रारम्भ में काम सहित हो, परन्तु पीछे से सर्वथा काम का विजय करनेवाला हो, बड़ा महान हो तथा प्रारम्भ में कुछ परिग्रह से आकांक्षा रखनेवाला हो; परन्तु पीछे से जो सर्वथा उनकी आकांक्षा से विमुख हो गया हो । यदि कहा जाएगा कि संसार के || अन्दर जो महादेव प्रसिद्ध हैं, वही इन गुणों का धारक महादेव हो सकता है, सो ठीक नहीं; क्योंकि वह पार्वती नाम | म की स्त्री को अपना आधा अंग बनाए हुए है; इसलिए स्त्री में अत्यन्त रत रहने के कारण वह सदा स्त्रियों से विरक्त । नहीं माना जा सकता तथा अत्यन्त विषयलोलुपी होने के कारण वह मोक्षरूपी स्त्री में भी विशेष रूप से रत नहीं हो | सकता; क्योंकि इस प्रकार की विषयवासना में लिप्त पुरुषों से मोक्ष-स्त्री सदैव दूर रहती है तथा वह आदि में काम सहित हो, पीछे से काम का जीतनेवाला हो, यह भी बात उसके अन्दर नहीं बन सकती। क्योंकि जो काम के अत्यन्त वशीभूत होकर पार्वती नाम की स्त्री को सदा पार्श्व में रखता है, वह कभी काम जीतनेवाला नहीं कहा जा सकता । इसलिए संसार में जो प्रसिद्ध महादेव को काम का बैरी माना जाता है, वह सर्वथा मिथ्या है तथा वह पहिले || परिग्रहों से आकांक्षा रखनेवाला हो तथा पीछे से उनकी आकांक्षा से विमुख हो, यह भी बात नहीं; क्योंकि वह स्त्री रा रूप परिग्रह को एक क्षण भी अपने से दूर नहीं रख सकता । प्रत्युत उनमें ऐसा लिप्त है कि स्त्री को ही अपना आधा अंग मानता है तथा उसी में अपनी शोभा समझता है ।" माता प्रजावती इस प्रश्न का उत्तर देती थी कि ऐसा महादेव तीर्थंकर भगवान ही हो सकते हैं; क्योंकि तीर्थंकर भगवान ही भावों की अपेक्षा से सदा स्त्रियों से विरक्त रहते हैं अथवा सदा विद्यमान रहनेवाले मोक्षस्त्री में वे ही अत्यन्त अनुरक्त रहते हैं। प्रारम्भ में कामदेव के जाल में फंस जाने पर भी अन्त में वे कामदेव को सर्वथा नष्ट करनेवाले होते हैं। प्रारम्भ में परिग्रह में कुछ आकांक्षा रखने पर || ४७ भी पीछे वे उससे सर्वथा रहित हो जाते हैं एवं जन्मते ही नियम से मति, श्रुति एवं अवधि इन तीन ज्ञानरूपी नेत्रों के धारक होते हैं ।।३७।।" कोई-कोई जिसमें क्रिया गुप्त है, ऐसा श्लोक कह कर इस प्रकार माता की प्रशंसा करती थी-- 444 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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