Book Title: Mallinatha Purana
Author(s): Sakalkirti Acharya, Gajadharlal Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ 444 देव आकर तुम्हारे पुत्र को मेरु पर्वत के शिखर पर ले जाकर अभिषेक करावेंगे । स्वप्न में जो पूर्ण चन्द्र देखा है, उसका फल यह है कि जिस प्रकार चन्द्रमा जीवों को आनन्द प्रदान करनेवाला है एवं अन्धकार का नाशक है, उसी प्रकार तुम्हारा पुत्र भी संसार को आनन्द का प्रदान करनेवाला एवं मोहरूपी अन्धकार का सर्वथा नाश करनेवाला होगा । सूर्य जो देखा है, उसका फल यह है कि जिस प्रकार सूर्य अन्धकार का नाशक है अर्थात् उसके उदय होते ही संसार के घट-पट आदि पदार्थ स्पष्ट रूप से दीख पड़ते हैं एवं सर्वत्र उसकी कांति दैदीप्यमान रहती है, उसी प्रकार म॥ तुम्हारा पुत्र भी समस्त अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करनेवाला होगा एवं सर्वत्र संसार में उसका प्रताप फैलेगा। दो सुवर्णमय घट जो देखे हैं, उसका फल यह है कि तुम्हारा पुत्र निधियों का स्वामी होगा । किलोल करती दो मीन देखी है, उसका फल यह है कि वह पुत्र परम सुख का स्थान होगा। जल से लबालब भरा हुआ जो सरोवर देखा हैं, उसका फल यह है कि वह पुत्र परमसमस्त मनोहर लक्षणों से पूर्ण होगा । तीर को भेद कर बहनेवाले जल से युक्त जो समुद्र देखा है, उसका फल यह है कि तुम्हारा पुत्र लोकालोक को प्रकाशित करनेवाले 'केवलज्ञान' का स्वामी होगा । सिंहासन के देखने का फल यह है कि वह साम्राज्य पद के योग्य होगा एवं समस्त जगत् उसे नमस्कार करेगा। स्वप्न में जो विमान देखा है, उसका फल यह होगा कि वह कल्पातीत विमान से तुम्हारे गर्भ में आवेगा । जगमगाता हुआ जो नागेन्द्र का भवन देखा है, उसका फल यह होगा कि वह अवधिज्ञानरूपी नेत्र का धारक होगा; रत्नराशि के देखने का यह फल है कि वह अखण्ड सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का खजाना होगा । जाज्वल्यमान निघूम अग्नि जो देखी है, उसका फल यह है, समस्त जगत् का स्वामी तुम्हारा पुत्र शुक्लध्यानरूपी तीव्र अग्नि से कर्मरूपी काष्ठ को भस्म कर डालेगा तथा सोलह स्वप्नों के अन्त में मुख में प्रवेश करता हुआ जो गजेन्द्र देखा है, उसका फल यह है कि तुम्हारे निर्मल गर्भ में उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ जिनेन्द्र स्वयं अवतीर्ण होकर निश्चय से जन्म धारण करेंगे ।। १०-१७।। राजा कुम्भ अवधिज्ञान के धारक थे, इसलिए उनके मुख से स्वप्नों का इस प्रकार उत्तम फल सुन कर महारानी प्रजावती को परमानन्द हुआ एवं मारे आनन्द के उसको उस समय यह मालूम पड़ने लगा मानो साक्षात् पुत्र ही प्राप्त कर लिया हो ।।११८।। ___ अथानन्तर माता प्रजावती की सेवा के लिए सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र की आज्ञा से श्री, ही, धृति कीर्ति, बुद्धि एवं 4449 ॐ Jain Education international For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116