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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
ऐसी स्थिति मे पिता ने उसे गृह व्यवस्था तथा सम्पत्ति रक्षा का कार्य सोपा | अपना यह दायित्व वह कुशलता से निभाने लगा ।
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तीसरे पुत्र के चाल-चलन ओर कुरुचियो को देखकर सभी लोग बडे निराश हुए। पिता को भी बहुत दुख हुआ । सभी ने उसका तिरस्कार किया । कुछ वडे-बूढो ने तो स्पष्ट ही कह दिया - यह नालायक है, अयोग्य है । स्वय तो वर्वाद हुआ ही है, साथ ही उसने बाप-दादो की प्रतिष्ठा को भी धक्का पहुँचाया है । उसके जैसे लडके से भविष्य मे कोई भी आशा रखना व्यर्थ है । ऐसी अयोग्य सन्तान से तो निस्सन्तान रहना ही श्रेयस्कर है । यदि सेठ ने उसे घर मे रखा तो यह स्वयं तो डूब ही रहा है, अपने साथ समस्त परिवार को भी ले डूबेगा ।
इष्ट जनो की सारी बाते सेठ ने सुनी, गम्भीरतापूर्वक विचार किया और भारी मन से, हृदय मे गहन पीडा का अनुभव करते हुए अपने उस निकम्मे तीसरे पुत्र को घर से निकाल दिया ।
विवेक पूर्वक चलकर बडे पुत्र ने अपार सम्पत्ति और यश का अर्जन किया । मँझले पुत्र ने सामान्य बुद्धि का प्रदर्शन करते हुए मूल पूँजी को तो सुरक्षित रख ही लिया, किन्तु तीसरा अविवेकी पुत्र सब कुछ गँवा कर राह का भिखारी वन गया ।
- उत्तराध्ययन