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द्वीप के अश्व
"अहा | वन्धुओ । अब चिन्ता की कोई बात नहीं। मेरी मति लौट आई है । मेरी दिशा-मूढता नष्ट हो गई है । अब मैं सब कुछ जान सकता हूँ ।”
सुनकर सब के जी मे जी आया । प्रसन्न होकर वे बोले
"प्रभु की कृपा से हमारे प्राणो की रक्षा हो गई। अब बताओ हम इस समय किस स्थान पर है ?"
“हम लोग इस समय कालिक द्वीप के समीप है । देखो-वह देखोवह कालिक द्वीप दिखाई पड़ रहा है। दिखाई देता है न ? वह उस दिशा मे।"
नियामक द्वारा सकेत की गई दिशा मे देखने पर सभी को द्वीप की भूमि तथा हरे-भरे वृक्ष दिखाई पडे । हर्ष से वे सब लोग नाच उठे ।
का को द्वीप की दिशा मे मोड दिया गया। दक्षिण दिशा की अनुक्ल वायु के सहारे धीरे-धीरे नौका द्वीप के किनारे जा लगी। लंगर डाल दिया गया। छोटी-छोटी नौकाओ द्वारा सब लोग द्वीप की भूमि पर उतर गए।
वह द्वीप बडा ही सुन्दर था । सघन वृक्षो से भरा था । डेरा डाल दिया गया । भोजन-विश्राम के उपरान्त सव लोग उस द्वीप मे प्राप्य वस्तुओ की खोज मे निकले।
खोज करने पर उन लोगो ने पाया कि वह द्वीप अमूल्य धातुओ की अनेक खानो से भरा हुआ था। चाँदी, सोने, रत्नो तथा हीरो की खाने विखरी पड़ी थी। बहुत-सा स्वर्ण-रत्न उन लोगो ने प्रसन्न होकर एकत्र कर लिया।
लेकिन उन स्वर्ण-रत्नो के अतिरिक्त भी वहाँ एक अन्य विशिष्ट वस्तु उन्हे दिखाई पडी ओर वह थी-विचित्र प्रकार के सुन्दर अश्व । वे अश्व अत्यन्त उत्तम जाति के थे और उनका रग नीला या। तेजी ने इधरउधर दाउते हुए वे अश्व ऐसे सुन्दर प्रतीत होते ये मानो आकाश में उतर कर नीली विजलियाँ ही उम द्वीप मे क्रीडा कर रही हो।