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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं राजा को विश्वास नही हुआ । बात ही ऐसी थी। उसने परीक्षा कर स्वयं निर्णय करने की ठानी, सेवको को आदेश दिया। सेवको ने आना का पालन करते हुए वही प्रक्रिया दुहराई जैसी कि मन्त्री ने प्रयुक्त की थी। परिणाम भी वही हुआ। खाई का दुर्गन्धयुक्त, गन्दा जल अमृत के समान, उत्तम और स्वास्थ्यवर्धक हो गया।
तब राजा जितशत्रु को मन्त्री की बात पर विश्वास हुआ। उसके तत्वज्ञान से वह प्रभावित हुआ । उसे बुलाकर कहा
“मन्त्रिवर | तुम सचमुच जानी हो । यथा नाम तथा गुण हो । क्षमा चाहता हूँ। मुझे जिनवचन मुनाओ।"
मन्त्री ने राजा को केवली-भापित धर्म के तत्व समझाए। जीवअजीव के भेद बताए । कर्म-वन्ध के कारण और निवारण के उपाय कहे ।
राजा जितशत्रु का आत्मलोक प्रकाशित हो उठा। केवली भगवन्तो द्वारा कहे गए धर्म को सुनकर उसका हृदय आनन्द से भर उठा। आत्मकल्याण का मार्ग उसे साफ-साफ दिखाई पड़ने लगा। उसने कहा--
___ "मन्त्रिवर | तुमने मेरा बडा उपकार किया। मै निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ। मैं पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाबतो को तुम से ग्रहण करना चाहता हूँ।"
राजा ने श्रावकव्रत ग्रहण कर लिए । जीव-अजीव का ज्ञाता हो गया। माधु-साध्वियो की सेवा करता हुआ वह जीवन-यापन करने लगा।
लगभग बारह वर्ष पश्चात् चम्पा नगरी मे स्थविर मुनि का आगमन हुआ । उनके सदुपदेश मे प्रभावित होकर राजा ने अपने पुत्र अदीनशत्रु का राज्याभिषेक किया और मन्त्री महित दीक्षा ग्रहण कर ली।
दीक्षित होकर जितशत्रु मुनि ने ग्यारह अगो का अध्ययन किया। वों तक दीक्षा पर्याय पालन कर अन्त मे एक मास की सलेखना कर उन्होने मिद्धि प्राप्त की।
सुबुद्वि मुनि ने भी ऐसा ही किया ओर मुक्त हुए । एक के सहारे मरा जीव भी ससार-सागर के पार उतर गया।
--ज्ञाता० १११२