Book Title: Mahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 291
________________ १०० महावीर युग की प्रतिनिधि कयाएँ वह रहा है । देखते ही घृणा उत्पन्न हो, दूर से ही निकल जाने की इच्छा हो, ऐसी स्थिति। श्रीकृष्ण के साथियो ने जब देखा तो नाक पर हाथ लगाए, मुंह से थू-थू ओर छी-छी करते इधर-उधर हट गए। किन्तु श्रीकृष्ण ने उस कुत्ते के मुख मे उसकी चमचमाती हुई दन्तपंक्ति देखी और कहा "देखो, इस श्वान की दन्त पक्ति कैसी स्वच्छ, कैसी चमकीली है । मोती के समान चमक रही है।” हमने कहा न, कि देखने वाली ऑख चाहिए। वह दिव्य दृष्टि चाहिए जो बुरी से बुरी वस्तु मे से भी अच्छाई के दर्शन करले । अपनीअपनी दृष्टि है । औरो ने मात्र श्वान की सडी-गली देह देखी, कृष्ण ने देखी उसकी धवल दन्त-पंक्ति । देवता विस्मित रह गया। अपने वास्तविक स्वरूप मे आकर, श्रीकृष्ण को वन्दन कर लौटा और मन ही मन कहता चला-"सचमुच, श्रीकृष्ण के पास दिव्य गुण-दृष्टि है ।" -आवश्यक 'चूणि'

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