Book Title: Mahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ २७ पछतावा सम्राट कोण के अन्य भाइयों में हल्ल ओर बिल्ल नामक भी दो भाई थे । उनके पिता विम्बसार जब जीवित थे, तब वे अपने दोनो पुत्रो को दो बहुमूल्य वस्तुएँ दे गए थे - हल्लकुमार को सेचनक गन्धहस्ती और विल्लकुमार को वक चूल हार । कोणिक तो सन्तुष्ट थे । अपने योवन काल मे उनके हृदय में जो असन्तोष और अहंकार था, वह अब समाप्त हो चुका था । किन्तु उनकी रानी पद्मावती मन ही मन इन दोनो अमूल्य वस्तुओं को किसी न किसी प्रकार हथियाने की योजनाएँ बनाया करती थी । एकवार उसने कोणिक से कह भी दिया "गन्धहस्ती और वक चूल हार मुझे चाहिए। आप शक्तिशाली है, महा बलवान है | इतना सा काम नही कर सकते ?" कोणिक ने शान्ति से समझाया था" सामर्थ्य का प्रश्न नही है, रानी । न्याय का प्रश्न है। पिता ने वस्तुएँ मेरे भाइयों को स्वयं प्रदान की है। उनके पास ही रहने दो। मेरे तो हैं वे, कोई पराये तो है नहीं । हमे कमी भी किस बात की है। " किन्तु त्रिया जब अपने चरित्र पर उतर आए तव किम का चले ? कोणिक ने अपनी पत्नी की हठ के आगे आखिर घुटने टेक दिए आर हत्य-विहल से वे दोनो वस्तुएँ मागी । -वि बेचारे इतने समर्थ नहीं थे कि कौशिक का सामना 224

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316