Book Title: Mahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 307
________________ २८ कलाकार - कृष्ण कलाकार थे। कलाकार का साधन हे कोशल । उसके बल पर वे अनेक ऐसे कार्य करने में समर्थ ओर सफल हो जाते थे, जिन्हे अन्य व्यक्ति वल होते हुए भी न कर पाते ।। एक बार बलदेव, सत्यक और दारुणि के साथ वे बन-विहार को गए । वन मे ही जब सूर्यास्त हो गया तो रैन-बसेरा जगल मे ही कर लिया। एक विशाल वट-वृक्ष को आश्रय बना लिया। बन या । वन में अनेक उपद्रवो की आशका रहती है, जीव-जन्तुओ की भी, और भूत-पिशाचो की भी । अत निर्णय हुआ-एक एक कर वारो व्यक्ति पहरा दें, शेप मो लं। प्रथम प्रहर मे दामणि जागा । जब वह पहरे पर या नव एक पिशाच आया । वहुत समय से भूखा रहा होगा! आज तृप्त होकर भोजन करना चाहता था। वोला-- "भूखा हु । ने इन मोए हुए माथियो को खाऊँगा ।" दारणि ने तलवार खीच ली। उमके रहते उमके माथियों को कान खाएगा? युद्ध हुआ। किन्तु मनुष्य, मनुष्य हे और पिशाच, पिणान । पिशार ने मनुष्य ने जीत नकता था? मनुष्य-बल क्षीण होता कता गया और पिशाच-वन बटता गया । अन्त मे दाणि परास्त होकर गिर पटा। इनो प्रकार एकनाक कर दनरे आर तीनर प्रहर में मत्यक कार

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