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मै क्या मांगू ?
१६५ भूपण नही ला सकते तो इतने पैसे तो लाकर दो कि मै पुष्पमालाएँ ही खरीद सकूँ। तुम्हे छोड मै और किससे याचना करूँ ? अपनी सखी-सहेलियो के बीच मे ये पुराने वस्त्र पहनकर कैसे जाऊँ ?"
कपिल चिन्ता मे पड गया। वह तो दूर देश से एक ब्रह्मचारी विद्यार्थी के रूप मे यहाँ आया था। उसके पास क्या धन था ? कैसे वह अपनी प्रेमिका की मांगो की पूर्ति करे?
प्रेमी को मौन देखकर प्रेमिका ने उकसाया____ "ऐसे चुप क्या बैठे हो ? ससार बसाना है तो कुछ पुरुपार्थ तो करना ही पड़ेगा । तुम ब्राह्मणपुत्र हो । मै तुम्हे उपाय बताती हूँ। भिक्षा माँगने मे तुम्हे कोई सकोच नही होना चाहिए । श्रेष्ठि धनदत्त का नियम है कि जो भी कोई व्यक्ति प्रात काल उसे सबसे पहले आशीर्वाद देने जाता है उसे वह दो माशा स्वर्ण दान मे देता है । तुम वह स्वर्ण लाओ। अभी कुछ काम तो निकल ही जायगा।"
कपिल को मार्ग सूझ गया। रात मे वह सोचता रहा–'सबसे पहले जाऊँगा, स्वर्ण लाकर प्रेमिका को प्रसन्न कर दूंगा।' इसी विचार के साथ उसे चिन्ता भी हुई, 'कही मुझसे पहले ही कोई अन्य याचक धनदत्त के पास न पहुँच जाय । अन्यथा मेरी आशा पर पानी फिर जायगा। प्रेमिका रूठ जायगी।'
इन विचारो के कारण उसे नीद ही नहीं आई। करवटे बदलतेवदलते जब थक गया तो आतुरता का मारा वह घर से निकल पडा । उसे भान ही नहीं रहा कि प्रात काल होने मे अभी बहुत विलम्ब है । चारो ओर घिरे हुए अन्धकार की ओर भी उसकी दृष्टि नही गई । उस पागल प्रेमी को तो एक ही धुन थी-'कोई मुझसे पहले ही न जा पहुंचे। प्रेमिका रूठ न जाय ।'
अँधेरी रात मे एक व्यक्ति को चुपचाप चला जाता देख, पहरेदारो ने उसे टोका-"कौन है ? इस अंधेरी रात में कहाँ जा रहा है ? चोरी करने का इरादा है, क्या ?"
कपिल ने घबराकर कहा-"नही भाई । चोरी करने क्यो जाऊँगा? बाह्मण का पुत्र हूँ। मै तो श्रेष्ठि धनदत्त के घर जा रहा हूँ। उसे आशीर्वाद दंगा और स्वर्ण प्राप्त करूंगा।"