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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
वार जन्म-मरण का चक्र भयानक है । अत मै आपकी आज्ञा से भगवान की शरण मे जाकर प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूँ ।"
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पुत्री की तीव्र इच्छा जानकर, उसके कल्याण के लिए माता-पिता ने उसे मह अनुमति प्रदान कर दी ।
प्रत्येक प्रकार से काली के शरीर को स्वच्छ व शुद्ध करके, शुद्ध वस्त्र पहिनाकर, धूमधाम के साथ काल तथा कालश्री भगवान के समीप पहुँचे और निवेदन किया
"प्रभो । यह हमारी पुत्री आपकी शरण मे आना चाहती है । उमे स्वीकार करे ।"
भगवान ने कहा
"धर्म ही प्राणी की शरण है । शुभ कार्य मे विलम्ब से कोई लाभ नही ।"
भगवान ने काली को पुष्पचूला आर्या को शिष्यनी के रूप में प्रदान किया। आर्या ने उसे दीक्षित किया |
अब काली कुमारी प्रत्रजित होकर विचरने लगी ।
समय व्यतीत होता गया । एक समय ऐसा भी आया जब काली आर्या शरीर को साफ-सुथरा रखने वाली हो गई । वह बार-बार पानी से अपने हाथ, पैर, मुख आदि को धोती । इसी प्रकार वह जिस स्थान पर कायोनर्ग. शन अथवा स्वाध्याय करती, उस स्थान को भी पहले जल छिडक शुद्ध करती फिर वहाँ बैठती ।
उसकी यह प्रवृत्ति देखकर पुप्पचला आर्या ने उसे समझाया
"देवानुप्रिये । श्रमणी निग्रन्थियों को इस प्रकार जल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह अनुचित है और धर्म के विरुद्ध हे । तुम्हे इम प्राचिन करना चाहिए, आलोचना करनी चाहिए ।"
किन्तु बाली आर्या ने पुष्पचला आर्या की बात नहीं मानी और अपना ना नही बदला। परिणामस्वरूप शेप आर्याएँ उसकी अवहेलना करने लगी।