Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1964
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 13
________________ 12 आप महावीर जयन्ती के पुण्य पर्व पर विगत वर्षों के समान ही इस वर्ष भी ' स्मारिका' का प्रकाशन करने जा रहे हैं यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई। इस माध्यम से प्राप सचमुच ही भगवान महावीर के मंगलमय उपदेशों का प्रचार एवं प्रसार कर एक ठोस रचनात्मक कार्य कर रहे हैं । भगवान महावीर एक सच्चे लोकनायक महापुरुष थे। उन्होंने लोकहित के लिये लोकभाषा में अपने कल्याणकारी उपदेशों का प्रचार कर विश्व में एक नवीन क्रान्ति का शंखनाद किया था । राजस्थान युगों-युगों से भारत की गौरव - भूमि रहा है । एक ओर जहां मातृभूमि की प्रान-बान की रक्षा के लिये वहां के ग्राबाल-वृद्ध नर-नारी अपना सर्वस्व समर्पण करते रहे, वहीं दूसरी ओर साहित्य एवं संस्कृति की रक्षा में भी अनवरत एवं अथक श्रम एवं प्रयत्न करते रहे। वहां के विविध प्राचीन शास्त्रागारों में सुरक्षित हजारों-लाखों हस्तलिखित प्राचीन चित्र-विचित्र विविध विषयक ग्रन्थ रत्न तथा सहस्रों पुरातत्व एवं कलाकृतियां इसके ज्वलन्त साक्षी हैं । इन्हीं सभी गौरवयुक्त कार्यों से प्राज राजस्थान का एक - एक करण हमारे लिये महान तीर्थ क्षेत्र बन गया है । यथार्थ ही वह भारत माता का शृंगार है । आपके प्रयोजनों के सकुशल एवं सफलतापूर्ण सम्पन्न होने की में वीर प्रभु ... मंगल कामना करता हूँ । आरा राजाराम जैन महावीर जयन्ती स्मारिका भगवान महावीर एवं उनके द्वारा उपादिष्ट धर्म दर्शन आदि के विषय में नानाविध दृष्टिकोणों से प्रकाश डालने वाला एक उपहार ग्रन्थ है । ऐसे - साहित्य का लगातार प्रकाशन आवश्यक है । जैन धर्म का प्राचीन वाङ्मय इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। अपने दर्शन, पुरातत्व, आचार संहिता, स्थापत्य कला एवं मूर्ति कला श्रादि के कारण दुनियां के धर्मों में जैन धर्म का अपना विशिष्ट स्थान है । सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि जैन सिद्धान्तों को दैनिक जीवन में उतारने से देश एवं विश्व का नैतिक स्तर काफी ऊँचा उठ सकता है । मनुष्य अपनी स्वार्थ वृत्ति • छोड़कर ऊंचा उठे इसी में कल्याण है । इससे सम्बन्धित साहित्य से मानव की बहुत बड़ी सेवा हो सकती है । मैं भगवान महावीर के प्रति अपनी श्रद्धांजली अर्पित करता हुवा राजस्थान जैन सभा के प्रयास की सराहना करता हूँ । सवाई मानसिंह राजमहल, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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