Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 7
________________ कहानी, उपन्यास, आख्यायिका, लघुकथा, दृष्टान्त आदि कथासाहित्य के ही अंग हैं। जीवन को आदर्शोन्मुख और सफल/सार्थक बनाने की दिशा में कथासाहित्य की भूमिका उपदेशों से कहीं अधिक सफल रही है । इसीलिए संत-महात्माओं और धर्मोपदेशकों ने कथा-कहानी और दृष्टान्तों का सर्वाधिक उपयोग/प्रयोग किया है ।मनोरंजन कहानी का उद्देश्य न होकर वस्तुत: जीवन संदेश या धर्मतत्व समझाने का एक माध्यम भर है | इन सभी दृष्टियों से जैन वाङ्मय का कथासाहित्य पूर्ण समृद्ध, विशद, विपुल और विराट् है । जैन कथाओं ने मनोरंजन के माध्यम से उसके पाठकों को जीवन की गहराइयों में उतारने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत कहानियां जैनजगत की विश्रुत कथाएं हैं। इन्हें अनेक लेखकों ने अपनी-अपनी तरह से लिखा भी है । ये सभी चरित्र उपासक दशांग सूत्र में मूल रूप से उपलब्ध है । ये सभी चरित्र भगवान महावीर के कृपापात्र विशिष्ट श्रावक हैं | धर्म को समर्पित गृहस्थ जीवन भी आदर्श बन सकता है और गृहस्थ जीवन में भी धर्मलक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, यह इन चरित्रों से प्रमाणित होता है। इन चरित्रों को मैंने बाल पाठकों की दृष्टि से अंकित किया है, क्योंकि बालक ही मानव और मानवता' का आधार है | आज का बालक ही कल का मानव बनेगा, अत: बचपन से ही उसके मानस में सद्संस्कारों का वपन किया जाये, यही सोचकर मेरा प्रस्तुत प्रयास है । इन सभी कथाओं में बालमन के अनुरूप उत्सुकता/जिज्ञासा, रहस्य-रोमांच तथा जीवन पद्धति के साथ जीवन-संदेश निहित है । कथाओं के अन्त में कथा का सारांश भी दिया है और कठिन शब्दों के अर्थ तथा पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या भी दी गई है। साथ ही अभ्यासार्थ प्रश्न भी दिए हैं। इससे माता-पिता तथा शिक्षक बच्चों से उनकी पाठ सम्बन्धी ग्रहणशीलता से भी अवगत हो सकते हैं। मुझे विश्वास है कि ये कथाएँ बालकों को तो भायेंगी ही ; शिक्षकों-अभिभावकों को भी इनकी उपयोगिता लाभान्वित करेगी। पुस्तक को चित्रों से युक्त/सचित्र होने से उनमें सजीवता का आभास भी पाठकों को होगा। अन्त में परम श्रद्धेय प्रात: स्मरणीय स्व. गुरुदेव योगिराज श्रीरामजीलाल महाराज एवं संघशास्ता जैन शासन - सूर्य गुरुदेव मुनिश्री रामकृष्णजी महाराज के पावन चरणों की कृपा से ही मेरा यह प्रयत्न रूपायित हुआ है | गुरुद्वय के प्रति मेरा प्रत्येक रोम-रन्ध्र कृतज्ञता से आपूरित है। उपासक दशांग सूत्र भगवान महावीर की मंगलमयी देशना है । उसमें वर्णित चरित्र हमारे लिये आदरणीय/अनुकरणीय है। उन पावन चरित्रों के अंकन में जो न्यूनाधिक हुआ हो, किसी प्रकार से कोई त्रुटि रही हो, उसके लिए तस्समिच्छामि दुक्कडं । बालमनों में धर्म-संस्कारों का जागरण हो, इसी भावना के साथ | सांवत्सर: 2050 21-8-1993

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