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तो, कुण्डकौलिक के सामने उपस्थित हुआ देव, गोशालक के नियतिवाद सिद्धान्त की प्ररूपणा करते हुए कह रहा था - "तुम गोशालक के सिद्धान्त को स्वीकार कर लो। वह कल्याणकारी मार्ग है।
देव की बात सुनकर कुण्डकौलिक मुस्काया और बोला
"यदि तुम सत्य की खोज करके यह जानना चाहते हो कि नियतिवाद और पुरुषार्थ वाद में कौन सत्य है तो पूर्वाग्रह रहित होकर मेरे प्रश्नों का उत्तर दो।”
देव ने कहा – “मैं तुम्हें समझाऊंगा कि गोशालक का मार्ग सत्य है और महावीर का असत्य।' ___कुण्डकौलिक ने देव से पूछा -"यदि गोशालक का नियतिवाद ही अन्तिम और यथार्थ सत्य है तो तुम्हें देवभव कैसे प्राप्त हुआ ? क्या देव-ऋद्धि, देव-वैभव और देवभव प्राप्त करने से पहले तुम्हें पुरुषार्थ नहीं करना पड़ा था ? धर्म-बल के बिना तुम देव कैसे बन गए?
अपनी बात को सत्य प्रमाणित करने के लिए देव ने कुण्डकौलिक को उत्तर देते हुए कहा -
"देव होना मेरी नियति थी। नियतिवाद के आधार पर ही मैं देव बना हूं। मुझे कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ा।
"यदि ऐसा ही है तो वृक्ष, लता आदि देवभव क्यों नहीं प्राप्त करते हैं ? कुण्डकौलिक ने कहा"इसके अलावा जितने भी एकेन्द्रिय जीव हैं, वे सभी क्यों देव नहीं बन जाते? अतः हे देव, मनुष्य जब धर्म-साधना का पुरुषार्थ करता है, तभी देव होना उसकी नियति बनती है।"
इस पर कण्डकौलिक के तर्क का देव कोई उत्तर नहीं दे पाया। वह सोचने लगा- इसका उत्तर गोशालक के पास अवश्य होगा। लेकिन यदि गोशालक भी इसका उत्तर न दे पाया तो केवल महावीर से मैं पुछंगापर मुझे तो दोनों के ही तर्क सही लगे, क्योंकि महावीर और गोशालक दोनों ही अपने-अपने सिद्धान्तों के विवेचक और प्रतिपादक हैं।
देव यह सोच ही रहा था कि उसके मन की दुविधा जामकर कुण्डकौलिक ने कहा -
'सत्य का निर्णय तो तुम्हें अपने विवेक से ही करना पड़ेगा। सत्य खोज के द्वारा जान जाता है। खोजस्वयं ही करनी पड़ती है। जो नियति, पुरुषार्थ का खण्डन करती हो, वह जीवन को निष्क्रिय बनाती है और जो पुरुषार्थ नियति का समर्थन करता है, वह.जीवन को ऊपर उठाता है।"
44/महावीर के उपासक