________________
- कुण्डकौलिक को भगवान महावीर के पुरुषार्थवाद का अबाधित ज्ञान था और उसपर अटूट विश्वास
भी। अँधेरे में सर्प दिखने वाली रस्सी प्रकाश होने पर रस्सी ही रह जाती है । इसी ज्ञान के आधार पर कुण्डकौलिक ने देव को अपने सुलझे हुए तर्कों से निरुत्तर करके गोशालक के नियतिवाद को निरस्त-निस्तेज और मिथ्या सिद्ध कर दिया था। F कथा का कथ्य यह है कि यदि सत्य सिद्धान्त का ज्ञान अबाधित/असंदिग्ध हो तो कोई भी मिथ्यावादी
साधक को भ्रमित नहीं कर सकता, उल्टे साधक ही मिथ्यावादी को निरुत्तर कर देता है।
नियति = जो अपने आप, स्वयं से घटित होना है, जिसे कोई रोक नहीं सकता।नियतिवाद = नियति का सिद्धान्त कर्म = आत्मा की सत्-असत् प्रवृत्तियों से आकृष्ट एवं कर्मरूप में परिणत होने वाले पुद्गल विशेष प्ररूपणा = कथन करना द्वादशांगी = गणधरों द्वारा तीर्थंकरों की वाणी का संकलन अंग कहलाता है | ये अंग या संकलन बारह हैं, अत:द्वादशांगी कहे जाते हैं। जैसे देह के हाथ-पैर, जंघा आदि अंग है, वैसे ही श्रुत-पुरुष के बारह अंग हैं। ये इस प्रकार से हैं - १. आचारांग, २. सूत्रकृतांग , ३. स्थानांग , ४. समवायांग, ५. विवाह पद्धति, ६. ज्ञाताधर्म कथांग, ७. उपासकदशांग, ८. अन्तकृद्दशा, ९. अनुत्तरोपपातिक, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद | साधना = श्रेष्ठ आचरण |पुरुषार्थ = किसी कार्य की सिद्धि के लिए किया जाने वाला परिश्रम |एकेन्द्रिय जीव
जिन जीवों को मात्र शरीर (स्पर्श) रूप एक ही इन्द्रिय प्राप्त है;वृक्ष |पुरुषार्थवाद = पुरुषार्थ का सिद्धान्त उद्बोधन = शिक्षा या ज्ञान देना।
अभ्यास
1. कुण्डकौलिक को देव ने क्या कहा था ? 2. गोशालक कौन था और उसकी क्या मान्यता थी? 3. भगवान महावीर के पुरुषार्थवाद की व्याख्या करो। 4. क्या बिना पुरुषार्थ किये विद्यार्थी को विद्या आ सकती है ? इस पर अपने विचार लिखो। 5. श्रमणों को, गृहस्थों से विशेष तर्कशील होना चाहिए, भगवान महावीर ने यह क्यों कहा था ? 6. खण्डन -मण्डन से आप क्या समझते हैं ? लिखकर स्पष्ट करो।
तत्वदर्शी कुण्डकौलिक/47