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आत्मद्रष्टा महाशतक
मगध देश की राजधानी राजगृही नगरी का जैन जगत में सर्वाधिक महत्व एवं गौरव है। यहां आराध्य प्रभु वर्धमान महावीर के चौदह चातुर्मास हुए थे। राजगृही के राजा श्रेणिक की भगवान महावीर में अनन्य आस्था थी। यहां पर ही गाथापति महाशतक नाम का एक निर्ग्रन्थ धर्मोपासक रहता था। ___गाथापति महाशतक ने भगवान महावीर से श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे । अन्य सद्गृहस्थ गाथापति की तरह वह भी यश व श्री से पूर्ण था। उसकी अनेक पत्नियां थी. उसमें प्रमुख थी रेवती। रेवती बाह्य रूप से जितनी सुन्दर थी, भीतर से उतनी ही कुरूप थी। उसने पति के साथ न तो भगवान की देशना सुनी थी और न धर्म में ही उसने कोई रुचि ली थी। मौज-शौक मनाना ही उसके जीवन का लक्ष्य था।
वह ईष्यालु भी बहुत थी। अपनी सौत बहिनों से सदैव जलती रहती थी। उनका बुरा भी सोचती रहती। महाशतक साधु स्वभाव का व्यक्ति था । वह सभी पत्नियों से समान व्यवहार करता था तथा सभी की सुख-सुविधा का भी पूरा-पूरा ख्याल रखता था। . एक बार रेवती ने एक कुटिल विचार किया। उसने सोचा-यदि मैं अपनी सभी सौतों को मार दूं या मरवा दूं तो इनका समस्त धन, आभूषण आदि मुझे प्राप्त हो जायेंगे, फिर मेरा पति महाशतव