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दुःखित हो गया। तब उसने अपने अवधिज्ञान का उपयोग करके रेवती से कहा
"रेवती ! तू सात दिन बाद मर जाएगी। सात दिन तक तू विषूचिका नामक रोग से पीड़ित रहेगी और मरने के बाद रत्नप्रभा नामक नरक में जाएगी। वहां तू चौरासी हजार साल तक नारकीय जीवन भोगेगी । "
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अपने पति से अपना भविष्य सुनकर रेवती भयभीत हो गई। उसे लगा कि दुःखी होकर महाशतक ने मुझे शाप दिया है। वह भयभीत मन से घर पहुंची वहां जाते ही विषूचिका रोग से पीड़ित हो गई । सात दिन बाद वह तड़पती हुई मरकर नरक में हो गई ।
उन्हीं दिनों भगवान महावीर श्रमण परिवार के साथ पुनः राजगृह आये और गुणशीलक राजोद्यान में ठहरे । भगवान ने महाशतक के मन को देख प्रभु ने गणधर गौतम से कहा
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" गौतम, तुम महाशतक के पास जाओ और उससे कहो कि रेवती का भविष्य बताने के दोष की वह आत्मालोचना करे ।
“गौतम, अन्तिम मरणान्तिक संलेखना में भक्तवान के प्रत्याख्यानी श्रावक को सत्य और यथार्थ होते हुए भी ऐसी वाणी नहीं बोलनी चाहिए, जो सुनने वाले के लिये कष्टप्रद हो । रेवती का उसने यथार्थ भविष्य बताकर उसे दुःख दिया है । "
भगवान महावीर का आदेश शिरोधार्य कर गौतम महाशतक के पास गए। सब कुछ सुनने के बाद महाशतक ने आलोचना की । प्रतिक्रमण व प्रायश्चित्त ग्रहण कर स्वयं को दोषमुक्त किया ।
LANGANA
सारांश
बीस वर्ष श्रावक चर्या का पालन करते हुए महाशतक देह त्याग वह सौधर्म देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहां च्वय कर महाशतक मनुष्यभव प्राप्त कर संयम की विमल साधना करेगा । अन्त मोक्ष प्राप्त करेगा ।
x भूल उसी से होती है, जो सही मार्ग पर चलता है। गलत रास्ते पर चलने वालों से भूल होगी ही क्यों ? क्योंकि भूलने के मार्ग पर तो वे चल ही रहे हैं। महाशतक सफल साधक था | साधना करते हुए उससे एक भूल हो गयी थी । भूल का सुधार सदा संभव है। महाशतक की भूल को सुधारने के लिए भगवान महावीर ने गौतम स्वामी को उसके पास भेजा था। महाशतक ने अपनी भूल समझी और आलोचना आत्मशुद्धि की भूल सुधारने के लिए आलोचना ही सक्षम साधन है ।
60 / महावीर के उपासक