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म महाशतक श्रावक था, किन्तु उसकी पत्नी रेवती घोर अधर्मिणी थी, फिर भी महाशतक ने उसके साथ
गृहस्थ जीवन यापन किया, यह उसकी उदारता और व्यावहारिक कुशलता का द्योतक है। = महाशतक की पत्नी रेवती ने अपनी असफल चेष्टाओं से पति को धर्म से विचलित करना चाहा, पर
महाशतक साधना में दृढ़ रहा। वह कामजयी सिद्ध हुआ, लेकिन क्रोध को वह जीत नहीं पाया था। क्रोध में महाशतक ने रेवती को उसका अगला भव बता दिया कि सात दिन में तेरी मृत्यु होगी और तू नरक में जाएगी | महाशतक ने अवधि ज्ञान में जो देखा वह कटु सत्य कह दिया । कटु सत्य महाशतक की
भूल थी और गौतम स्वामी ने उसी की आलोचना कराकर महाशतक की आत्म-शुद्धि कराई थी। = साधक को अपनी साधना सदैव अप्रमत्त रह कर करनी चाहिए और स्खलना हो जाने पर आलोचना
के लिये तत्पर रहना चाहिए।
शब्दार्थ
ज्ञानवरणीय कर्म = आत्मा के ज्ञान गुण को आच्छादित करने वाले कर्म प्रतिक्रमण = अपने दोषों की आलोचना कर विशुद्ध बनाना | आलोचना = प्रायश्चित्त स्वरूप अपने दोषा भूलों वस्तुत:चूक को गुरू के सम्मुख प्रकट करना नरक = भयंकर पापाचरण करने वाले जीवकृत पापों का फल भोगने के लिए जहां पैदा होते हैं। प्रायश्चित्त = साधना में लगे हुए दोषों की विशुद्धि के लिए हृदय से पश्चात्ताप करना।क्षयोपशम = कुछ कर्मों को नष्ट कर देना और कुछ कर्मों को इस प्रकार शान्त कर देना कि वे फल देने के योग्य न रहें ।आर्तध्यान = प्रिय के वियोग एवं अप्रिय के संयोग में चिंतित रहना।रौद्रध्यान = दूसरों का बुरा करने के तीव्र भाव। पौषध शाला = समस्त सांसारिक कार्यों से निवृत्त होकर २४ घण्टे के लिये धर्मध्यान करना तथा उपवासी रहना। भक्त पान = यथा विधि चारों आहारों का त्याग।
अभ्यास FIRTH 1. क्या महाशतक ने रेवती को शाप दिया था? 2. रेवती ने अपनी सौतों को क्यों मरवाया ? 3. भगवान महावीर ने गणधर गौतम को महाशतक के पास क्यों भेजा था ? 4. राजगृह नगर को भाग्यशाली क्यों माना जाता है ? 5. रेवती मरकर कहां गई थी?
आत्मदृष्टा महाशतक/61