Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 66
________________ सारांश म घर-गृहस्थी और संसार के सभी काम करते हुए भी मन को सदा धर्म और प्रभु चिन्तन में लगकर जीवन बिताने वाले व्यक्ति का हर कार्य भक्ति और धर्म हो जाता है, यह प्रेरणा नन्दिनी पिता के कथानक से - मिलती है। = जीवन के चौदह वर्ष धर्मसाधना करते हुए बिताने के बाद नन्दिनी पिता ने श्रमणों का सा कठोर जीवन बिताना शुरू किया और बिना किसी उपसर्ग और देवबाधा के उसने साधना सम्पन्न की। म बड़े-से-बड़े साधक में भी यदि संसार की कोई इच्छा, कामना, आसक्ति, क्रोध आदि शेष होता है, तब उसकी निष्ठा की परीक्षार्थ उपसर्ग आते हैं, परनन्दिनीपिता के जीवन में अन्त तक कोई बाधा | उपसर्ग नहीं आया, इससे ज्ञात होता है -धर्म में उसकी रुचि सहज-स्वाभाविक थी और उसकी कोई सांसारिक-प्रवृत्ति शेष नहीं रह गयी थी। UALLAMALAM शब्दार्थ प्रत्याख्यान = नियम, व्रत। वीतराग = जिसने राग को पूर्णत: समाप्त कर दिया हो । श्रावक = . तीर्थंकर के वचनों पर आचरण करने वाला (गृहस्थ)। धर्मानुरागी = धर्म में रुचि रखने वाला।दम्पती = पतिपत्री |संवर = पाप प्रवृत्तियों को बन्द करना ।निर्जरा = साधना के द्वारा पाप कर्मों को नष्ट करना |राजू = परिमाण विशेष ।उत्तुंग = ऊंचा |संठाण = आकार |अनादि = जिसका प्रारम्भ न हो |आध्यात्मिक = आत्मा सम्बन्धी ज्ञान। अभ्यास 1. नन्दिनी पिता ने कुछ विशेष सेवक किसलिए नियुक्त किए थे? 2. अश्विनी कौन थी? 3. नन्दिनीपिता की सदा सर्वदा क्या इच्छा रहती थी? 4. नगर के अन्य लोग नन्दिनी पिता के पास क्यों आते थे? 5. श्रावक व्रत ग्रहण करने ने बाद नन्दिनीपिता कितने वर्ष तक अपनी पत्नी औरे पुत्र साथ रहा था ? 6. नन्दिनीपिता ने सलेखना व्रत क्यों ग्रहण किया था? यह व्रत कब और क्यों किया जाता है ? श्रावक नन्दिनीपिता/65

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