Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 51
________________ मैं चकित और हर्षित हूं। और तभी शकडाल पुत्र अपने स्थान से उठा, भगवान के निकट पहुंचा। वन्दन कर कहने लगा - "प्रभो पोलासपुर नगर के बाहर मेरी बर्तनों की दुकानें हैं। आप वहीं, पधारें। वहां प्रातिहारिक पीठ, फलक आदि स्वीकार कर मुझे अनुगृहीत करें। भगवान महावीर ने शकडाल पुत्र की प्रार्थना स्वीकार कर ली। वे उसके साथ उसके बर्तनों की दुकानों पर पहुंचे। वहां ठहरने का अनुकूल स्थान था। भगवान वहां रुके। उस समय वहां मिट्टी के बर्तनों का निर्माण हो रहा था। मिट्टी से बने कुछ बर्तन धूप में सूख रहे थे। उनकी ओर संकेत करते हुए भगवान ने शकडालपुत्र से पूछा - "ये पात्र किस तरह बनाये गए? 'प्रभो, मिट्टी को कूटकर पानी में रौंधा गया। इसके पश्चात् चाक पर मिट्टी को आकृतियां देकर ये पात्र बने हैं, फिर इन्हें आग में तपाकर पक्का किया गया है।" तब भगवान ने कहा - देवानुप्रिय! इस पूरी प्रक्रिया में उत्थान, बल व कर्म का प्रयोग हुआ है या इनका बनना नियति थी ?" अपने संस्कार बद्ध सिद्धान्त की रक्षा करते हुए शकडाल पुत्र ने उत्तर दिया - "प्रभो, सब पदार्थ नियत हैं। इस मिट्टी की यही नियति थी। अतः इनके निर्माण में उत्थान, बल, कर्म आदि का कोई योग नहीं है। पुराने लिखे को मिटाने में समय लगता है। यह निश्चय कर भगवान ने दूसरा प्रश्न किया"शकडाल पुत्र ! यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे इन मिट्टी के पात्रों को तोड़ दे, तुम्हारी पत्नी अग्निमित्रा के साथ अभद्र व्यवहार करने लगे तो ऐसी स्थिति में तुम क्या करोगे?" शकडाल पुत्र ने कहा - वही करूंगा, जो करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को मैं गालियां दूंगा। उसे मारूंगा और उसके प्राण भी ले लूंगा।" भगवान महावीर ने शकडाल पुत्र के इसी उत्तर के द्वारा समझाने के विचार से फर्माया - 'देवानुप्रिय! तुम तो सब को नियति के अन्तर्गत नियत मानते हो। तुम सारे भावों और कार्यों को नियत मानकर उत्थान, बल, कर्म का कोई योग ही नहीं मानते। फिर कोई व्यक्ति न तो तुम्हारे पात्रों को तोड़ता है और न तुम्हारी पत्नी के साथ बल प्रयोग करता है तथा तुम भी न तो किसी को गाली देते हो, न मारते हो और न किसी के प्राण लेने का प्रयास करते हो। तब बताओ पात्रों को तोड़ने वाले, 50/महावीर के उपासक

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