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पदशी कुण्डकोलिक
कुण्डकौलिक गाथापति धनी एवं सम्पन्न गृहस्थ था । वह कम्पिल पर नगर में रहता था। गांव के बाहर सहस्राम्रवन में कुण्डकौलिक ने भगवान महावीर की देशना अपनी पत्नी पूषा के साथ सुनने के बाद भगवान से श्रावक के बारह व्रतों को ग्रहण कर लिया। __एक बार दोपहर के समय कुण्डकौलिक अपनी वाटिका में धर्म क्रियाएं करने बैठा था कि तभी एक देव ने आकर उससे कहा
"कुण्डकौलिक! तू क्यों अपने समय को नष्ट कर रहा है ? महावीर की वाणी और उनका मार्ग तुम्हारा कल्याण नहीं कर सकता, क्योंकि वह मिथ्या है। सत्य और कल्याणकारी मार्ग तो मंखलिपुत्र गोशालक का नियतिवाद है । तुम्हारी साधना में अनिश्चय तथा गोशालक के नियतिवाद में तो आदि से अन्त तक निश्चय ही निश्चय है।"
पाठक यहां जानना चाहेंगे - गोशालक कौन था और उसका नियतिवाद सिद्धान्त क्या था। इस सम्बन्ध में प्रसंगवशात् तुम पहले समझ लो।
भगवान महावीर का ही एक शिष्य था - गोशालक । वह काफी समय से भगवान महावीर के साथ ही रहता था। एक बार भगवान ने एक तिल के पौधे को देखकर गोशालक से उसके भविष्य के बारे में बताया - इस पौधे पर सात फल आयेंगे और शेष नष्ट हो जाएंगे। गोशालक को भगवान की