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चुल्लशतक ने अपनी पत्नी बहुला से कहा -'बहुला, मैंने तो एक देव को पकड़ा था। देव जाने कहां भाग गया? बहुले, देव ने हमारे तीनों पुत्रों को मेरे सामने ही खौलते तेल के कड़ाह में डालकर यमलोक पहुंचा दिया और अब वह मेरे धन का हरण करके ले जा रहा था, तभी मैंने उसे पकड़ा।' ___ "स्वामी! आपने बहुत बड़ा धोखा खाया है। बहुला ने चुल्लशतक से कहा- हमारे तीनों पुत्र तो घर पर सुखपूर्वक सो रहे हैं । उनका तो बाल भी बौका नहीं हुआ है। भ्रम में पड़कर आप धर्म से डिग गए हैं। अतः अपने इस दोष की आलोचना करके पुनः धर्म में स्थिरता लाओ।'
चुल्लशतक को पत्नी की बात सुन गहरा पश्चाताप हुआ । उसने विधिपूर्वक अपने दोष का प्रायश्चित्त किया और फिर से ध्यान में स्थिर हो गया। इस प्रायश्चित्त के बाद कालान्तर में चुल्लशतक ने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएंधारण कीं। इस प्रकार बीस वर्ष तक उसने श्रावक व्रतों का पालन किया और अन्त में एक महीने का अनशन करके मृत्यु का वरण किया। आयुष्य पूर्ण करके चुल्लशतक सौधर्म कल्प के अरुण विष्ट विमान में देव बना । देवभव आयु पूर्ण करके वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। महाव्रतों का पालन करेगा और श्रमणचर्या द्वारा मोक्ष प्राप्त करेगा।
सारांश MAIN म 'धन में सुख रहता है यह धारणा एक भ्रान्ति है | धन सामान बढ़ाने/सुविधाएं जुटाने का माध्यम तो
है, पर सुख-शान्ति, आनन्द, चिन्ता साहित्य यह सब धन से संभव नहीं है । दुःख का कारण धन का नाश नहीं है, धन के प्रति आसक्ति ही दुख का कारण है। जब व्यक्ति के जीवन में धन की उपयोगिता के स्थान पर उसका मूल्य और उसकी आसक्ति बढ़ जाती है, तभी वह भयभीत हो उठता है । चुल्लशतक का कथानक इस सत्य का साक्षी है। चुल्लशतक पुत्रों के वध की धमकी से विचलित नहीं हुआ, क्योंकि उसको भी यह अबाधित ज्ञान था कि अजर-अमर आत्मा की मृत्यु नहीं होती और शरीर का नाश भी आयुपूर्व कोई नहीं कर सकता। लेकिन धननाश के भय से वह विचलित इसलिए हो गया कि उसके मन में धन के प्रति आसक्ति अभी
शेष थी। र प्रत्यक्ष में देखा जाता है धनहीन/निर्धन सुख की नींद सोते हैं और धनी चिन्ता से बैचेन करवटें बदलते
है। धन में सुख नहीं है, देव धननाश करके भी चुल्लशतक का सुख नहीं छीन सकता था, यह सिद्धान्त विस्मृत हो जाने के कारण ही वह विचलित हुआ । यहाँ भी उसकी पत्नी ने उसका मार्गदर्शन कर दिया।
40/महावीर के उपासक