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मातृभक्त चुलनीपिता |
भगवान महावीर के समय की बात है। वाराणसी नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। इसी नगर में चुलनीपिता नामक श्रेष्ठी रहता था। उसे गाथापति कहा जाता था ; क्योंकि वह अभावग्रस्त लोगों की धन के द्वारा सहायता करता था । यह सब करते हुए भी उसमें अभिमान नहीं था। भलाई के दान - पुण्य के कार्य करके वह उन्हें भूल जाता था। उसने अपने मन में निश्चय कर रखा था कि जैसे स्नान करना, भोजन करना याद नहीं रखा जाता है, वैसे ही भलाई के हर काम को करके भूल जाना ही सुखद है।
सुबह को किया भोजन शाम को भूख लगा देता है। शाम का भोजन अगले दिन फिर भूख जगा देता है । ऐसे ही हर दिन ही पिछले अच्छे काम को भूल कर नया काम करना चाहिए। उसके इसी नेक गुण के कारण राजा, प्रजा, सम्बन्धी और पड़ोसी सब की आंखें चुलनी पिता को देख श्रद्धा से झुक जाती थीं। विनय और नम्रता का गुण उस के शरीर में दौड़ने वाले रक्त की तरह समाया हुआ था। ___ उसकी धर्मशीला पत्नी श्यामा भी वात्सल्य व विनम्रता की मूर्ति थी। हजारों गायों के गोकुल, कृषि व व्यापार ये उसकी आय के मुख्य स्रोत थे। कई हजार गायों के समूह को गोकुल कहा जाता था। अनेक गोकुलों की आय, व्यापार व कृषि की आयों का लेखा-जोखा करोड़ों स्वर्ण मुद्रा था । श्यामा तीन पुत्रों की मां थी। उसके तीनों पुत्र माता-पिता के आज्ञाकारी थे। पत्नी का स्नेह व पुत्रों का प्रभूत