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आदर प्राप्त होने पर भी वह हर रोज अपनी वत्सला माता की चरण वंदना करना नहीं भूलता था। उसे जब भी भूख लगती वह अपनी माता के पास जाता। चरण वंदना करता और भोजन के लिए छोटे बच्चे की तरह नम्रतापूर्वक कहता : मां भूख लगी है, भोजन दे दे।
चुलनीपिता की माता का नाम था भद्रा सार्थवाही। चूलनीपिता जब अपनी मां से भोजन मांगता तो उसे बेहद खुशी होती थी। वह चाहता तो पत्नी श्यामा से या पुत्रों को आज्ञा देकर भोजन प्राप्त कर सकता था। पर उसका मानना था, भोजन तो मां के हाथ से ही लेकर खाने में आनन्द आता है। एक दिन मां भद्रा अपने बेटे चुलनी पिता से बोली- "बेटा, अब तू तीन पुत्रों का पिता हो गया है। अनेक दास-दासी तेरे सेवक हैं; फिर भी तू मेरे पास बैठ कर भोजन करता है । मुझ से ही भोजन मांगता है। अपनी पत्नी श्यामा से भोजन मांगा कर न?"
"मां तुम ठीक कहती हो । अभी तो मैं युवा ही हूं । बूढ़ा हो जाऊंगा तब भी मैं तेरा बेटा ही रहूंगा। तेरे लिए तो छोटा का छोटा ही रहूंगा। मेरे जीवन में सुख और समृद्धि सब का आधार तेरा आशीर्वाद तथा प्यार ही है। मां ! बेटे जैसे प्यार की अमृत वर्षा करना श्यामा के बस की बात नहीं है कि वह तेरे जैसा प्यार दे सके।” चुलनी पिता ने मां भद्रा के सवाल का जवाब दिया।"चल श्यामा से न सही, दास दासी तो हैं । भद्रा ने फिर से चुलनीपिता से अपनी बात कही। __इस पर चुलनीपिता ने उसी विनम्रता से उत्तर दिया -"मां ! बचपन में भी मुझे भूख लगती थी। आज भी लगती है। नौकर-सेवक तब भी थे। तब भी मैं तुझ से ही भोजन मांगता था। मैं कहता था- मां भूख लगी है। क्या करूं मां मेरा पेट ही तेरे हाथ का परोसा भोजन खा कर भरता है। मैं तेरे पास बैठकर धीरे-धीरे भोजन करता हूँ। इस भोजन वेला में जो तू मुझे नेह से निहारती है, बस तृप्ति उसी से होती है। उसी तृप्ति को पाने के लिए मैं तेरे हाथ का परोसा भोजन खाना पसंद करता हूं।"
भद्रा सेठानी बोली- "अरे नादान इतना बड़ा होकर भी मां से मोह करता है ?" __ "मां तो मां ही होती है। मां से बड़ा न कोई देव है, न गुरु। तू ही देवतुल्य है, गुरु है क्योंकि तू मां है। मां तीर्थ है। मां संसार में सब से बड़ी होती है। मां, मैं बड़ा भाग्यशाली हूं, वह भी तेरे कारण हूं। जिस पुत्र की मां संसार में है, वह सब से बड़ा होता है । वही सौभाग्य द्वार का स्वामी होता है। जिसके बेटा कह कर पुकारने वाली मां मौजूद हो, उससे सुखी बेटा और कौन हो सकता है इस संसार में?" परिवार का स्नेह और नागरिकों का सम्मान पा कर भी गाथापति चुलनीपिता के मन में एक
मातृभक्त चुलनीपिता/25