Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 32
________________ श्रावक सुरादेव वाराणसी शाश्वत महत्त्व की नगरी रही है। वह पुण्य नगरी है, धर्मनगरी है और है ज्ञान नगरी। जैन, वैदिक, बौद्ध तीनों धर्मों का संगम वाराणसी में हुआ है। अब से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व इस नगरी में सुरादेव नामक गाथापति रहता था। उन दिनों वाराणसी में राजा जितशत्रु का राज्य था। गाथापति सुरादेव की पत्नी थी धन्या। उसने अपने धन्या नाम को सार्थक किया था। धन्या तीन पुत्रों की माता और पतिव्रता सन्नारी थी। पति - पत्नी दोनों ही सद्संस्कारी थे। इन दोनों के भीतर धर्म के संस्कार विद्यमान थे, जो अभी अंकुरित नहीं हुए थे। एक दिन भगवान महावीर की धर्म देशना के अमृत जल की वृष्टि हुई तो पति-पत्नी के संस्कारों के अंकुरण का अनूठा अवसर बन गया था। हजारों गायों के गोकुलों और करोड़ों की सम्पत्ति के स्वामी सुरादेव ने एक दिन सुना कि वाराणसी के बाहर कोष्ठक चैत्य में भगवान महावीर श्रमणों के साथ पधारे हैं। तब वह निर्ग्रन्थ ज्ञात प्रभु महावीर की देशना सुनने पत्नी धन्या के साथ पुहंच गया। भगवान ने मानव जीवन की सार्थकता का महत्त्व बताते हुए कहा – यह जो कुछ दिखाई देता है, वह सब अनित्य है। यह सब नष्ट हो जायेगा, केवल धर्म ही नित्य, शाश्वत और सनातन है। जो व्यक्ति एक देशीय अणुव्रतों का भी पालन करते हैं, वे भी अपना कल्याण कर लेते हैं । जो श्रमण होकर

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