Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ तो देव को बहुत ही क्रोध आया । वह सबसे पहले सुरादेव के बड़े पुत्र को ले आया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले, फिर उन्हें उबलते तेल में डाल दिया। यह सब उसकी माया थी। इसके पश्चात् उसने कड़ाह का खौलता तेल सुरादेव पर भी उड़ेल दिया। सुरादेव को अकथनीय कष्ट हुआ, पर वह ध्यान से विचलित नहीं हुआ। देव और भी क्रुद्ध हुआ । उसने सुरादेव के शेष दोनों पुत्रों के साथ भी ऐसा ही किया, जैसे बड़े पुत्र के साथ किया था। तीनों पुत्रों के मरने और तीनों बार खौलते तेल की पीड़ा भोगने के बाद भी सुरादेव की धर्मनिष्ठा अडिग बनी रही। देव सोचने लगा - अब कौन सा उपाय करूं जिससे सुरादेव विचलित हो जाए । काफी देर सोचने के बाद देव ने निर्णय लिया-मनुष्य कष्टसाध्य, असाध्य रोगों की भयंकरता से अवश्य घबरा जाएगा। ऐसा सोचकर उसने सुरादेव को फिर एक और चुनौती दे डाली - "सुरादेव! मैं तुझे ऐसे भयंकर रोग एक साथ दूंगा कि तू जीवनभर तड़पता रहेगा । रोगों से दुःखी होकर तू मृत्यु की कामना करेगा, पर तुझे न तो मौत आयेगी और न तुझे रोग ही छोड़ेंगे। ____ "सुरादेव ! मैं तुझे श्वास, कास, ज्वर, दाह, कुक्षीशूल, भगन्दर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिरोग, मस्तकशूल, अरुचि, अक्षिवेदना, कर्णशूल, उदररोग, खुजली और कुष्ठ सोलह रोग दूंगा। इनमें से कोई एक रोग ही तेरा जीना दूभर कर देगा। तू कल्पना कर कि जब सोलहों रोग तुझे जकड़ेंगे, तब कष्ट का सिलसिला तू सह सकेगा।". रोगों के नाम सुनते ही सुरादेव विचलित हो गया। उसने निश्चय किया कि देव मुझे रोगों से ग्रसित करे, उससे पहले ही मैं इसे पकड़कर क्यों न मार दूं। यह सोचते ही सुरादेव अपने आसन से उठा और देव को पकड़ने के लिये उद्यत हुआ। देव तभी अन्तर्धान हो गया। देव के भ्रम में सुरादेव ने पौषधशाला के एक खम्बे को पकड़ लिया और जोर-जोर से चीखने लगा। उसकी चीख सुकर उसकी पत्नी धन्या वहां आयी। वह चकित होकर पूछने लगी'आप इतने परेशान क्यों हैं और इस-खम्बे को क्यों पकड़े हुए हैं ?" पत्नी को पास देखकर सुरादेव कुछ संयत हुआ और देव द्वारा निर्मम तरीके से पुत्रों की हत्या का वृत्तान्त सुनाया। तब धन्या बोली___"स्वामी ! आपको देव ने एकदम भ्रमित कर दिया है। हमारे तीनों पुत्र सुरक्षित हैं । देव की बातों में आकर आप धर्म-ध्यान से विचलित हो गये हैं। अब आप अपनी भूल की आलोचना करके 34/महावीर के उपासक

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74