Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 29
________________ चुलनीपिता के लिये यह बहुत गम्भीर चिन्ता का समय था। वह चिन्ता में न पड़ कर महावीर के वचनों का चिन्तन करने लगा – “आयुष्य का समय पूर्ण होने से पहले किसी की मृत्यु नहीं हो सकती। यदि मेरे पुत्र की आयु पूर्ण हो गयी है, तब चिन्ता से क्या बनेगा और यदि उसकी आयु अभी शेष है, तब उसे कोई मार नहीं सकता। फिर भगवान ने यह भी फरमाया है - धर्म परम मंगल है। उसकी आराधना करने से कभी बुरा नहीं हो सकता। अतः मेरे पुत्र का भी अमंगल नहीं होगा। यह देव कितने भी अत्याचार कर ले, परन्तु मेरा यह कुछ भी बुरा नहीं कर सकता, क्योंकि मैं धर्म की आराधना कर रहा हूं।' थोड़ी देर बीती। वह देव उबलता हआ तेल लाया और उसने वह तेल चलनीपिता पर उ उल दिया। खौलते तेल की पीड़ा से चुलनी पिता तड़प अवश्य उठा पर तब भी उसने यही चिन्तन किया- 'धर्म साधना में कभी अमंगल नहीं हो सकता।' यह सोच कर वह अपने व्रत में अचल बना रहा । इसके बाद देव ने चुलनी पिता के शेष दोनों पुत्रों की भी आकृतियां बनाकर, उनके साथ भी वैसा ही किया। इस पर भी चुलनीपिता को धर्म जागरणा में अविचल देख कर देव बौखला उठा और फिर पुनः चुनौती देते हुए बोला "धर्म से तो तुझे प्रेम है, पर अपने पुत्रों से तुझे तनिक भी प्रेम नहीं है। मैं जानता हूं कि तुझे अपनी माता भद्रा सार्थवाही से गहरी ममता है। मैं अब उसकी भी वही दुर्दशा करूंगा, जो तेरे पुत्रों की की है। देव की इस चुनौती से चुलनी पिता अंदर तक हिल गया। भगवान की वाणी का चिन्तन छोड़ कर वह सोचने लगा- 'माता की सुरक्षा करना पुत्र का कर्तव्य है। यह देव तो अनार्य है। कुछ भी कर सकता है। पुत्र माता के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकता। अनार्य देव मेरी माता को कष्ट पहुंचाये, उससे पहले ही इसे पकड़कर मैं ठिकाने लगाता हूं।' ऐसा सोचकर चुलनी पिता अपने आसन से उठा और देव के पीछे दौड़ा। पर उसके देखतेदेखते देव अंतर्धान हो गया। देव के भ्रम में चुलनी पिता ने पौषध शाला के एक स्तम्भ को ही पकड़ लिया और चिल्लाने लगा। तभी उसकी माता वहां आ पहुंची। उसने अपने पुत्र से सारी बातें सुनी - तो उसे समझाया-"पुत्र! किसी देव ने उपसर्ग देकर तेरी धर्म परीक्षा ली है। तेरे तीन पुत्र सुरक्षित हैं। मैं भी सुरक्षित हूं। मां के प्रति तेरा जो कर्तव्य है, उस कर्तव्य बोध ने तुझे विचलित कर लिया है बेटा चुलनी । पर बेटा धर्म पालन से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। धर्म से सब छोटे हैं । माता की रक्षा उसकी सेवा लौकिक धर्म में सब से ऊपर है पर आत्म धर्म से बढ़कर नहीं। अपने धर्म से तू विचलित 28/महावीर के उपासक

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