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विशिष्टता दिखाना चाहता था। यह उसके अजेय होने का रहस्य है ।
शरीर और आत्मा, ये दोनों भिन्न भिन्न तत्व हैं। शरीर जड़ है। स्वयं में अपनी अनुभूति की शक्ति नहीं है । कर्म सहित आत्मा ही सुख-दुख का कर्त्ता और भोक्ता है ।
शरीर नाशवान है, वह जन्मता है, वृद्ध होता है और मरता है तथा नष्ट होकर पृथ्वी में विलय हो जाता है | आत्मा अजर-अमर अविनाशी है। वह अजन्मा है। शाश्वत है। न वह नष्ट होता है, न उसे कोई नष्ट कर सकता है।
ऐसी आस्था थी - कामदेव की ।
कामदेव के विचारों में दृढ़ता कितनी है, यह जानने / परखने को देव उपस्थित हुआ था | उसने अनेक कष्ट देकर यह देखना चाहा -कामदेव मात्र कहता है या जो कहता है वह जीवन में विद्यमान है । देव ने कामदेव को पूर्ण रूप से आस्थावान पाया ।
देव द्वारा दिये गये उपसर्गों से कामदेव के विचलित न होने का रहस्य उसकी आत्मा और शरीर की भिन्नता का दर्शन था ।
Xx देव जब परास्त हो गया और उसने क्षमा मांग ली, तब भी कामदेव को स्वयं पर अहंकार नहीं जागा ।
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शब्दार्थ
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सम्यक्त्व = यथार्थ तत्व श्रद्धा । कायोत्सर्ग = एकाग्र होकर शरीर की ममता का त्याग करना । पल्योपम उपमा विशेष, काल परिमाण | मिथ्या दृष्टि = तत्व के प्रति विपरीत श्रद्धा | निर्जरा = तप के द्वारा कर्ममल के उच्छेद से होने वाली आत्मा की उज्जवलता । उपसर्ग = देव, मनुष्य या पशु-पक्षी द्वारा दिये जाने वाले कष्ट |तहत्ति = जैसा आप ने कहा, वह सत्य है ।
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: अभ्यास
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1. कामदेव की पारिवारिक व आर्थिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में करो ।
2.
घर - गृहस्थी को जीते हुए कामदेव ने क्या अनुभव किया ?
3.
परीक्षा लेने आया देव सम्यक् दृष्टि था या मिथ्या दृष्टि ?
4.
देव ने कामदेव श्रावक को क्या-क्या कष्ट दिये थे ?
22/ महावीर के उपासक