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म पनी पति की अनुगामिनी होती है । पति पत्नी को अपने प्रत्येक कार्य से परिचित करवाता है, फिर - उन्हें क्रियान्वित करता है। प्र रथ के दोनों पहियों की तरह, पति-पत्नी समान रूप से एक दिशा में गतिमान होते हैं। इस तरह जीवन ___ का रथ उद्देश्य की ओर बढ़ता जाता है | म आनन्द ने जो व्रत स्वयं स्वीकार किये थे,उनसे अपनी पत्नी को भी अवगत करवाया । तब आनन्द की
धर्मपत्नी ने भी उन व्रतों को स्वीकार किया। = सन्तोष सुखी जीवन की कुंजी है । किसी व्यक्ति के पास अरबों, खरबों की सम्पत्ति हो जाये, परन्तु
उसके जीवन में यदि सन्तोष नहीं है तो वह कभी सुखी नहीं हो सकता | सन्तोषी स्वल्प साधनों में भी सुखी होता है।
भगवान महावीर ने आनन्द को इसीलिये अपरिग्रह व्रत (सन्तोष व्रत) स्वीकृत करवाया था। + जीवन का अन्तिम लक्ष्य त्याग है, भोग नहीं । त्यागी इस जन्म में भी और आगे के जन्मों में भी सुखी
होता है | भोगी यहां भी दुःखी रहता है और जन्म-जन्म तक तृष्णा की ज्वाला में जलता रहता है । + आनन्द ने अपना अन्तिम समय विशिष्ट त्यागमय बना लिया था | साधना में व्यक्ति को अनेक दिव्य
उपलब्धियां प्राप्त हो जाती हैं। उन उपलब्धियों पर यदि साधक अहंकार करने लगे तो प्राप्त उपलब्धियां नष्ट हो जाती हैं | यदि विनम्र बना रहे तो वे स्थायी बन जाती हैं। आनन्द को अवधि ज्ञान की विशिष्ट उपलब्धि मिली थी। लेकिन वह अहंकारी नहीं बना | विचार भेद होने पर भी आनन्द के मन में गौतम स्वामी के प्रति पूरी-पूरी विनय भक्ति बनी रही । यह एक गृहस्थ का आदर्श है । र गौतम स्वामी सत्य के परम अन्वेषी थे। तीर्थंकर के सामने तो उनकी झोली सत्य के लिये सदैव फैली
ही रहती थी, यदि उन्हें लगता कि किसी छोटे-से-छोटे व्यक्ति के पास भी सत्य है तो वे उसके ग्रहण करने में कभी संकोच नहीं करते थे। आनन्द से जो उनकी वार्ता हुई, उसको उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाया, अपितु सत्य की खोज की | भगवान ने जब उन्हें बतला दिया कि आनन्द की बात सत्य है तभी गौतम ने उसे स्वीकार कर लिया और वे आनन्द के पास गये , उसकी उपलब्धि के लिये उसे बधाई दी। कहा - आनन्द ! तुम ठीक हो। महावीर संघ के शीर्षस्थ पुरुष (गुण के स्वामी) गणपति गौतम सच में धन्य-धन्य थे।
MMADNHMAANI
शब्दार्थ nurnimum अवधि ज्ञान = इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना केवल आत्मा से रूपी द्रव्यों को जानना।
16/महावीर के उपासक