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व्यापारी अपना व्यापार बढ़ाने के लिये महामना आनन्द के पास निस्स्वार्थ हितैषी मित्र मान कर, पहुंच जाया करते । आनन्द किसी को गलत सलाह नहीं देता।
आनन्द केवल लोकाचार निभाने वाला गाथापति नहीं था। वह मन और विचारों से साफ-सुथरा, धार्मिक, आचार-विचार-सम्पन्न सदाचारी व्यक्ति था।
आनन्द का परिवार
आनन्द मन से उजला था। उसके परिवार के सभी लोग आनन्द के विचारों, व्यवहार और परोपकार-भाव को पूरी तरह मानते एवं आचरण करते थे । उसकी धर्म-शीला पत्नी का नाम शिवानन्दा था। वह पति में श्रद्धा रखती थी। उसके खाने, पहनने, सोने, प्रभुभक्ति इत्यादि कार्यों में पूरी तरह सहयोग करती थी। ऐसे माता-पिता के बच्चे भी आनन्द के आचार-विचार के अनुरूप संस्कारी थे।
परिवार के सभी लोग आनन्द को आदर देते थे। आनन्द भी सब को यथायोग्य स्नेह,सम्मान और वात्सल्य लुटाता था।
- आनन्द गाथापति बहुत बड़ा धनी था। साथ ही वह बहुत बड़ा दानी भी था। गोशाला, धर्मशाला, भोजनशाला, चिकित्सा केन्द्र, बावड़ी, उद्यान, अतिथि सम्मान शाला इत्यादि उस समय के प्रचलित जनोपकार के कार्य आनन्द ने किये थे। यही कारण था,आनन्द अपार सम्पत्ति का स्वामी होते हुए भी चिंता रहित था। उसके मन में पक्का विश्वास था कि धन का उपयोग केवल अपने लिये करते रहने से बड़ा दुरुपयोग कुछ नहीं है। धन, धरती से लिया है उसका अधिक से अधिक भाग धरती पर रहने वालों के लिये व्यय करना ही धन का सदुपयोग है। __भगवान् महावीर का वाणिज्य ग्राम में पधारना हुआ। उनके साथ प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर और हजारों श्रमण द्युतिपलाश नामक उद्यान में ठहरे । इस उद्यान में द्युति पलाश यक्ष का आवास था, इसलिए उद्यान का नाम भी उसी के नाम पर पड़ गया था। वाणिज्य ग्राम और आस-पास के लोगों को जब महाश्रमण महावीर के आगमन का पता चला तो हजारों की संख्या में नर-नारी भगवान की धर्म-देशना सुनने पहुंचे।
आनन्द ने भी सुना । वह भी उमंगित मन से अपने सेवकों, परिवार-जनों और इष्ट -मित्रों के साथ भगवान् की वाणी सुनने के लिए पहुंचा । महावीर में अत्यधिक श्रद्धा-भक्ति होने के कारण वह 10/महावीर के उपासक