Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
कह वा मम नयणजुयं सभावओ चिय निमेसपरिहीणं । देवत्तविरुद्धेवि हु निमीलणुम्मीलणे कुणइ ? ॥ ५॥ कह अंतरंतरा पेच्छणाइवक्खित्तचित्तमवि पावा । लद्धावसरचिय वेरिणिव विद्दवइ मं निदं? ॥ ६॥ अचंतपेमपरवसचित्तोऽवि हु परियणो कहमियाणि । कइवयदिणदिवो इव न वयणमभिनंदए मज्झ? ॥ ७ ॥ ता सबहा न कुसलं तक्केमि अहं सजीवियवस्स । कल्लाणकारिणो जेण होंति न कयाइ उप्पाया ॥ ८॥ इय एवंविहचिंतासंताणुप्पन्नतिवपरितायो । कप्पहुमोच वणदवपलीविओ भाइ सो तियसो ॥ ९ ॥
एवं जाव सोगपमिलाणणो सिंघासणगओ अच्छइ ताव तस्स चेव पियमित्तो कणगप्पभो नाम देवो समागओ दातं पएस, तं च तहटियं दद्दूण चिंतियमणेण-कहं अज पियमित्तो सुण्णचित्तलक्खोच लक्खीयइ ?, जओ अन्नवे
लासु दूराओ चिय में आगच्छमाणं पलोइऊण सायरं सप्पणयं पढमालाबासणप्पणामाइणा अभिणंदन्तो, संपयं पुण समीवमुवगर्यपि न पचभिजाणइ, ता नूणं कारणेण होयचंति विभाविऊण भणिओ अणेण-भो विजुप्पम ! किं चिंतिजइ ?, उड्डमवलोइऊण जंपियं विजुप्पभेण-भो वरमित्त ! कणगप्पभ इओ एहि, इमं च आसणमलंकारेहित्ति वुत्ते उवविठ्ठो एसो, पुच्छिओ य अणेण वेमणस्सयाकारणं, कहिओ य विजुप्पमेण स निययवुत्तंतो, तओ कणगप्पमेण भणियं-पियमित्त! सबहा न सुंदरमेयं, ता एहि तित्थगरस्स पुच्छामो, कहिं एत्तो तुह चुयस्स उप्पत्ती भविस्सइत्ति, विजुप्पभेण भणियं-एवं होउ, तओ गया विदेहखेत्ते, वंदिओ तित्थगरो, सविणयं पुच्छिओ य, जहा-भयवं!
XORA REGRESARI
५१ महा.
O S
Jain Educatio
n
al
For Private & Personel Use Only
R
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704