Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद गोयमेण जंपियं-भुवणत्तयसामिसाल! साहेसु को एस साहुरक्खिओ?, कहं देवमहणिजोत्ति, भगवया वागरियं- अतिथिमहावीरच०आयन्नसु-अस्थि सयलदिसावलयविक्खाया वाणारसी नाम नयरी, तहिं वसू नाम राया, सवंतेउरपहाणा वसुमईसिविभाग ८ प्रस्ताव
साधुरक्षितदेवी, वणियलोयसम्मओ जिणपालिओ सेठ्ठी, जिणमई से भारिया, एयाणि चत्तारिवि परमसावगाणि परोप्परं ||
कथा. ॥३२७॥ 18| परूढगाढपेम्माणि य एकचित्तत्तणेणं जिणधम्मं पालिंति, अन्नया सेहिणी नरिंदपत्ती य पंचवन्नसुरहिकुसुमदहि-18
यक्खयसुगंधिगंधधूववासपडिपुन्नपडलकरपरियरियाओ गयाओ जिणालयं, विरइया अणेगविच्छित्तिमणहरा सबत्रुर्विवाण पूया, तो विचित्तथुइथुत्तदंडएहिं सुचिरं जिणं थुणिऊण पयाहिणं दाउं वाहिं नीहरिया, ताहिं एगत्थ |पएसे अचंतदुइंसणो मच्छियाजालाभिणिभिणारावभीसणो वणमुहनिस्सरंतकिमिसंवलियपूयप्पवाहो सडियंगुलि-12 नासोट्टो कुट्ठवाहिविणट्टदेहो दिवो एगो पुरिसो, तं च दद्रूण देवीए भणियं-भो महाणुभाव ! कीस सवन्नूणमासा-18 यणं इहडिओ करेसि?, तेण भणियं-नाहमेत्थ निवासत्थी समागओ, किंतु चेइयवंदणत्थं, सेटिणीए भणियं-देवि! जइ इत्तियमेत्तमेव पओयणं पडुच अच्छइ ता अच्छउ, को दोसो?, जओ सुस्तमणावि जाव चेइयाई वंदंति वक्खाणं वा करिति सिणाणं वा पेच्छंति (सिस्साणं वायणं वा पयच्छंति पु.) ताव जिणभवणे निवसंति, देवीए ॥३२७॥ | भणियं-तहावि विणढसारीरत्तेण न जुज्जइ एयस्स अच्छिउं, अहवा निट्ठीवणाई अकरितो सम्ममुवउत्तो निमेसमित्तं जिणबिंबावलोयणेण अप्पणो समाहिमुप्पाएउ, किमजुत्तं ?, सेद्विणीए भणियं-एवमेयं, को महाणुभावस्स एयस्स
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