Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 672
________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥३२६ ॥ अन्नयाय चउद्दसिदिणमि पडिवन्नो अणेण उववासो गहिउं चउविहंपि पोसहं, ठिओ य गिगंतभूयाएं जाण - सालाए निसिंमि काउस्सग्गेण, मंगलाचि मयरद्धएण वाहिजमाणी उज्झियकुलाभिमाणा अगणियाववाया नीयगामिणीउ कामिणीउत्ति य पवायं सच्चविन्तिव घडिया सह विडेण, गेहजणलज्जाए पयडं चिय अकजमायरिङमपारयंती पुछदिन्नसिंगारेण विडेण सद्धिं रयणीए समागया तं चेत्र जाणसालं, अच्चंधयारत्तणेण काउस्सग्गट्ठियं जिणदासमपेच्छमाणीए तंमि चेव पएसे पक्खित्तो लोहकीलगतिक्खपइद्वाणो पलको अणाए, तक्कीलगेण य समीववत्तिणो जिणदासस्स विद्धो सहावकोमलो चलणो, सा य विडेण सद्धिमकज मायरिउमारद्धा । जिणदासो पुण अइतिक्खलोह कीलगविभिन्न चलणतलो । उप्पन्नगाढवियणो चिंतिउमेवं समादत्तो ॥ १ ॥ Tata हिसि तुमं णागमेत्तंपि चित्तसंतावं । सयमवि दिट्ठे विलिए भजाऍ अकजसत्ताए ॥ २ ॥ जं परमत्थेण न एत्थ कोsवि भज्जा व सयणवग्गो वा । किंतु सकज्जविणासे सबंपि परंमुहं ठाइ ॥ ३ ॥ अवि-तावच्चिय दंसइ पणइभावमायरइ तात्र अणुकूलं । निययत्थविसंवायं जाव न पेच्छइ पणइलोगो ॥ ४ ॥ ता या धम्मत्यन्नचिंताए एत्थ को दोसो ? । इत्थी सभावओ चिय दुग्गेज्झा बुच्चई जेण ॥ ५ ॥ अरक्खियावि अइपालियावि अइगाढरूढपणयावि । वाढं उवयरियाविहु देइ दुरंतं भयं महिला ॥ ६ ॥ तोचि मुणिवसमा सुबुद्धिमाहप्पमुनियपरमत्था । पच्चक्खरक्वसीहि व महिलाहिं समं न जंपंति ॥ ७ ॥ Jain Educat National For Private & Personal Use Only पौषधे जिनदास कथा. ॥ ३२६ ॥ jainelibrary.org

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